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संख्या २]
सम्पादकीय नोट
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प्रसन्नता की बात है कि राष्ट्रीय महासभा का ध्यान इस सम्बन्ध में वहाँ के अधिकारियों ने दृढ़ता से स्थिति को इस अोर है। यही नहीं, वह इस प्रश्न को भी हल कर काबू में रक्खा, अपनी न्यायनिष्ठा का परिचय दिया, लेना चाहती है कि कौंसिलों में जाकर उसके दल के नेता अपनी सजगता से वहाँ कोई वैसी दुर्घटना घटित न होने मंत्रियों के पद ग्रहण करें या न करें । आशा है कि दी जिसकी आशंका थी। इस सब के लिए वे लोग राष्ट्रीय महासभा के कार्यकर्ता इन सभी विषयों के सम्बन्ध निस्सन्देह प्रशंसा के पात्र हैं। में महासभा की स्थिति को स्पष्ट करने की ओर ध्यान देंगे। इसमें सन्देह नहीं है कि यदि इस मसले को मुसलतभी कार्य के मार्ग का निर्देश हो सकेगा और लोग पहले मान नेता धैर्य और संयम के साथ सुलझाने का प्रयत्न की भाँति देश-सेवा के कार्य में लग सकेंगे।
करते तो सिक्ख-नेता इतने नासमझ नहीं थे कि वे मुसल
मान-नेताओं के मस्जिद न गिराने के आग्रह की उपेक्षा शहीदगंज की मस्जिद
का मामला लाहार के शहीदगंज नाम के मुहल्ले में सिक्खों के गुरुद्वारे के भीतर एक पुरानी मस्जिद है। यह मस्जिद एक ज़माने से सिक्खों के अधिकार में है। इसके लिए मुसलमानों से उनका मुकदमा भी हो चुका है, जिसमें सिक्खों की जीत हुई है। इसी जुलाई के प्रारम्भ में सिक्खां ने इस पुरानी मस्जिद को गिरा देना चाहा। इसकी खबर पाकर लाकार के मुसलमान उत्तेजित हो उठे और उन्होंने उस मस्जिद के गिराने के कार्य में बाधा डालने के लिए भयकारक प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। पलतः सरकारी अधिकारियों का कानून और व्यवस्था की रक्षा के [ऊपर शहीदगंज की मस्जिद थी जिसे सिक्खों ने ढहा दिया है । नीचे चिराग़ शाह की लिए हस्तक्षेप करना पड़ा। मस्जिद है जिसे पंजाब सरकार ने मुसलमानों को उसके एवज में देने का निश्चय किया है।