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साय र बात
साचित्र मासिक पत्रिका
सम्पादक देवीदत्त शुक्ल श्रीनाथसिंह
सितम्बर १९३५ }
भाग ३६, खंड,२ संख्या ३, पूर्ण संख्या ४२९
{ भाद्रपद १९६२
श्रद्धा-गीत
लेखक, श्रीयुत जयशंकर प्रसाद' तुमुल कोलाहल कलह में
जहाँ मरु-ज्वाला धधकती मैं हृदय की बात रे मन !
चातकी कन को तरसती उन्हीं जीवन-घाटियों की
मैं सरस बरसात रे मन ! विकल होकर नित्य चंचल
पवन की प्राचीर में रुक खोजती जब नींद के पल
जला जीवन जी रहा मुक चेतना थक-सी रही, तब
इस झुलसते विश्व दिन की मैं मलय की वात रे मन !
- मैं कुसुम ऋतु रात रे मन ! चिर विषाद विलीन मन की चिर निराशा नीरधर से इस व्यथा के तिमिर वन की प्रतिच्छायित अश्रुसर में मैं उषा-सी ज्योति-रेखा मधुप मुखर मरन्द मुकुलित
कुसुम विकसित प्रात रे मन ! मैं सजल जलजात रे मन !