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सरस्वती
[भाग ३६
"मैंने उसे उसकी मा के पास लाहौर में रख दिया वह वही द्वितीय राजकुमार है जिसकी मृत्यु १९०७ में है। लड़की तथा दूसरे रिश्तेदारों के सामने मैंने धीरे से हुई बताई जाती है। अभी इस मुक़द्दमे का फैसला यह चर्चा छेड़ी कि यह कैसा होगा अगर इसका पुनर्विवाह नहीं हुआ, पर 'अर्जुन' में एक लेख छपा है जिससे कर दिया जाय । तब कुछ लोगों ने तो मेरी बात को सहा- इसका वर्तमान स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। यहाँ हम नुभूति के साथ सुना और कुछ ने नाराजी प्रकट की। उसे उद्धृत करते हैं-- मुझे विश्वास है कि जो दशा मेरी इस भतीजी की हुई है, कभी-कभी हमें उपन्यासों के 'रोमान्स' के दर्शन वैसी ही दशा वहाँ अनेक लड़कियों की हुई होगी। क्या वास्तविक जीवन में भी मिल जाया करते हैं। भोवालआप इन अभागिनी विधवात्रों के लिए प्रोत्साहन के एक- संन्यासी-केस इसी प्रकार की एक घटना है। १६३३ के दो शब्द लिखेंगे ?"
नवम्बर से ढाका के सब-जज के इजलास में एक बहुत ही ____ मैं नहीं जानता कि जिन चीज़ों के अन्दर हमारे वहम सनसनीखेज मुक़द्दमा चल रहा है, जिसमें वादी (मुद्दई) सदियों से जड़ जमा चुके हैं उन पर मेरी क़लम या की ओर से एक हज़ार से अधिक व्यक्ति गवाही दे चुके हैं श्रावाज़ का क्या असर पड़ सकता है। मैंने यह बीसों और प्रतिवादी (मुद्दालेह) के गवाहियों की संख्या भी बार कहा है कि प्रत्येक विधुर को पुनर्विवाह करने का सम्भवतः कम-से-कम इतनी ही और शायद अधिक पहुँच जितना अधिकार है, उतना ही अधिकार प्रत्येक विधवा को जायगी। इस सनसनी-पूर्ण मुकद्दमे का वादी सिख-धर्माभी है। हिन्दू-धर्म में स्वेच्छा से पाला हुआ वैधव्य-व्रत न्तर्गत उदासी-मत का माननेवाला एक संन्यासी है, जो जहाँ अमूल्य आभूषण-रूप है; वहाँ बल-पूर्वक पाला गया अपने को ढाका-ज़िले की एक बड़ी रियासत भोवाल के वैधव्यव्रत अभिशाप रूप है । और मुझे तो यह महसूस हो राजा का द्वितीय राजकुमार बतलाता है। उसका दावा है रहा है कि अनेक तरुण विधवायें यदि वे शारीरिक अंकुश कि अदालत उसे भोवाल-राज्य का स्वामी घोषित कर दे। के भय से नहीं किन्तु हिन्दू-समाज के लोकापवाद के भय प्रतिवादी भोवाल-रियासत का प्रबन्ध करनेवाला कोर्ट से मुक्त हों तो बिना किसी संकोच के वे अपना पुनर्विवाह अाफ़ वार्ड स और द्वितीय कुमार की रानी विभावती देवी कर डालें । इसलिए क्वेटा की इस दुखिया बहन की जैसी हैं, जिनका कहना है कि भोवाल के द्वितीय कुमार की मृत्यु स्थिति में जो अभागिनी तरुण विधवायें हों उन्हें पुनर्विवाह सन् १९०७ में ही हो चुकी थी और वादी द्वितीय कुमार करने के लिए हर तरह से समझाना चाहिए, और उन्हें नहीं, बल्कि पञ्जाब का रहनेवाला एक जाट है, जो षड्यन्त्र ऐसा अभयदान दे देना चाहिए कि अगर वे फिर से विवाह करके भोवाल-रियासत पर कब्ज़ा करना चाहता है । करना चाहती हों तो समाज में उनकी ज़रा भी निन्दा नहीं संन्यासी का कहना है कि मैं भोवाल-रियासत के राजा ' होगी। इतना ही नहीं, बल्कि उनके लिए योग्य वर खोज राजेन्द्रनारायण राय का दूसरा पुत्र हूँ। हम लोग तीन • देने का भी पूरा प्रयत्न होना चाहिए । यह काम किसी भाई थे । मेरी पत्नी रानी विभावती खराब चरित्र की स्त्री
संस्था के किये नहीं हो सकता। यह तो खुद उन सुधा- है। वह राजपरिवार के डाक्टर से अनुचित प्रेम करती रकों को करना चाहिए जिनके कुटुम्ब या सम्बन्धियों में थी। रानी विभावती, उसके प्रेमी डाक्टर और रानी के स्त्रियाँ विधवा हो गई हों।
भाई ने मेरी हत्या करने के लिए षडयन्त्र किया। १९०७
में मैं बीमार रहा करता था। स्थान-परिवर्तन के बहाने वे भोवाल-संन्यासी-केस
लोग मुझे दार्जिलिंग ले गये। वहाँ डाक्टर ने मुझे, नवम्बर सन् १९३३ से ढाका के सब-जज के संखिया खिला दी, जिसके कारण मैं मृतप्राय हो गया। इजलास में एक सनसनीखेज मुक़दमा चल रहा अन्तिम संस्कार करने के लिए जिस समय मेरा शरीर है। एक संन्यासी का दावा है कि भोवाल-राज्य का श्मशान ले जाया गया, उस समय वहाँ भीषण तूफ़ान श्रा
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