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सरस्वती
जीवित अवस्था में बँधी हुई चारपाई से किया था, उसमें मैं भी था । एक व्यक्ति ने अपने बयान में कहा है कि मैं द्वितीय कुमार के शरीर के साथ श्मशान तक गया था, वहाँ पर तूफ़ान श्रा जाने के कारण हम लोग कुछ समय के लिए छाया में चले गये थे । तूफ़ान बन्द होजाने के बाद जब हम लोग श्मशान में लौट कर गये, वहाँ लाश नहीं मिली। इस पर खाली चारपाई को जलाकर हम लोग वापस लौट आये।
बादी की ओर से सैकड़ों गवाहों ने यह बयान दिया है कि १६०७ में पहले दार्जिलिंग में भोवाल के द्वितीय कुमार के मरने की ख़बर मिली। कुछ दिन बाद यह खबर सुनाई पड़ी कि कुमार की लाश तूफ़ान या जाने के कारण फूँकी नहीं जा सकी। इसके बाद यह अफ़वाह रही कि कुमार जीवित हैं और उदासी संन्यासियों के साथ इधर उधर विचरण कर रहे हैं ।
सड़कों की सफाई
ग्वालियर का 'जयाजी प्रताप' अपने एक सम्पाकीय नोट में लिखता है-
हाल में कराची के कारपोरेशन ( म्युनिसिपैलिटी) ने कुछ ऐसे क़ानून बनाये हैं, जिनके अमल में श्राने पर न सिर्फ़ वहाँ के बाज़ारों और सड़कों का शोरगुल ही बन्द हो जायगा, बल्कि सफ़ाई की हालत भी बहुत कुछ सुधर जायगी । हिन्दुस्तान के शहरों में इतना शोरगुल तो नहीं होता जितना किसी ज़माने में लन्दन के बाज़ारों में हुआ करता था, फिर भी लोगों को आराम पहुँचाने के लिए यहाँ जो शोर होता है उसे कम करने और सफ़ाई की हालत ठीक करने की बहुत ज़रूरत है । म्युनिसिपैलिटियों को अक्सर यह शिकायत रहती है कि लोग सफ़ाई के महत्त्व को नहीं समझते और ग्राम सड़कों पर भी हर तरह की गन्दगी फैलाते हुए पाये जाते हैं। ऐसा प्रायः सभी शहरों में पाया जाता है। इसके अलावा भिखमँगों की वजह से भी अक्सर सड़क पर चलनेवालों को परेशानी रहती है। कोई उनके पीछे पीछे मीलों तक माँगते चलते हैं, कोई सड़क के किनारे बैठकर अपने बदन के घाव या
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[ भाग ३६
कटे हुए हाथ-पाँव दिखाकर पैसा माँगने के इरादे से उनमें हमदर्दी पैदा करते हैं और कोई पहले से ही आशीर्वाद देकर अपना मतलब बनाना चाहते हैं ।
इन्हीं सब फ़तों से नागरिकों को बचाने के लिए कराची- कारपोरेशन ने क़दम बढ़ाया है । वहाँ एक तरफ़ सड़कों पर सीटी बजाने, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने, गाली बकने, आवाज़ लगाकर चीज़ बेचने वग़ैरह की मनाई की ही गई है, दूसरी तरफ़ सड़क पर गन्दगी फैलाने की भी रोक की गई है। इसके अलावा यह भी क़ानून बना है कि कोई आदमी सड़क के किनारे बैठ कर अपने ज़ख्म या कटे हुए हाथ-पैर लोगों को दिखाकर भीख न माँगेगा। कोढ़ वग़ैरह छूत के मरीज़ों को शहर से बाहर रख देने का भी निश्चय हुआ है । कहने की ज़रूरत नहीं कि इन बातों के अमल में आने से शहरवालों को बहुत आराम पहुँचेगा ।
विविध प्रकार के प्राकृतिक उपद्रव 'आज' अपने सम्पादकीय नोट में लिखता है - चीन में कोई बात छोटी नहीं होती, सब बड़ी होती हैं। है भी वह बड़ा । दुनिया में सिर्फ़ चीन ही एक ऐसा देश है जिसके अधिवासियों की संख्या हम भारतवासियों से भी अधिक है, अतः यदि दैवी प्रकोप से चीनी भाई हमसे अधिक संख्या में मरें तो कोई आश्चर्य नहीं । खबर है कि पीली नदी की बाढ़ से १ लाख के ऊपर आदमी मरे हैं और दस लाख से ऊपर विपद्ग्रस्त हुए हैं । हम चीन के साथ हार्दिक समवेदना प्रकट करते हैं । अधिक संख्या में मरने और विपद्ग्रस्त होने का दुःख हम जानते हैं, श्रतएव चीन के दुःख से विशेषतया दुःखित हैं । विपदात्रों की तालिका हमारे घर में भी बढ़ती ही जाती है । क्वेटा का भूकम्प और उसके बाद की व्यवस्था के सम्बन्ध में कुछ न कहना ही अच्छा है । सीमाप्रांत के जिले जलमय हो गये हैं। आग भी लगी है । उनके सम्बन्ध में कुछ कहना और करना 'जायज़' है या नहीं, इसका ठीक पता हमें नहीं है । भूकम्प उधर अब भी श्रा रहे हैं। इधर हमारी ओर पानी का काल-सा हो रहा है । बीमारियाँ तो तरह तरह की यहाँ रहने को ही आई हैं।
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