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जाग्रत महिलायें। स्त्रियों के लिए छ: मूल्य उपदेश
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दैनिक ‘'हिन्दी-मिलाप' में उपर्युक्त शीर्षक से एक योरपीय महिला श्रीमती ड्रेक के एक अँगरेज़ी लेख का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हुआ है । श्रीमती ड्रेक ने अपने अनुभव की बातें लिखी हैं । ये उपदेश इस उद्देश से तैयार किये हैं कि पति-पत्नी के झगड़ों का अन्त हो जाय और गृहस्थी स्वर्ग-सी प्रतीत होने लगे । 'सरस्वती' के पाठक-पाठिकायों की जानकारी और प्रयोग के लिए हम ये छहीं उपदेश यहाँ उद्धृत करते हैं । यदि हमारे कोई पाठक उस सम्बन्ध में अपने अनुभव लिखकर भेजेंगे तो हम उन्हें भी प्रकाशित करेंगे -
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पहला उपदेश
अपने पति पर विश्वास रखो। पति के दिल में यह बात जमा हो कि वही एक मात्र मर्द है जिसे वह जानती है। इससे वह भी तुम्हें अपना समझेगा" । याद रक्खो विश्वास से विश्वास होता
है । अपने दिल में यह बात मत लाओ कि मारेही आदमी खराब हैं। मैं यह साहसपूर्वक कह सकती हूँ कि अधिकांश स्त्रियों के दिल में यही धारा घर किये होती है। किसी कारणवश उन्हें पुरुष समाज घृणा होती है। स्त्रियाँ यह जानते हुए भी कि हम पुरुषों के बिना जीवित नहीं रह सकतीं, उनसे घृणा करती हैं. और उनके आचरण पर सन्देह करती हैं। हर एक स्त्री अपने पति की कड़ी निगरानी करती है। जरा पति को बाहर से घर आने में देर हुई नहीं कि पत्नी के मिजाज़ की बारूद भड़क उठी। ऐसी दशा में वह यही समझती
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है कि वह कहीं किसी प्रेमिका से बातें करता रहा पत्नियाँ प्राय: बहुत ही ईर्ष्यालु और चौकन्नी होती हैं । यहाँ तक कि वे यह भी सहन नहीं करतीं कि उनका पति किसी युवती या किसी अन्य की स्त्री से २-४ मिनट के लिए बातचीत करे। यह बात उनके लिए बड़ी आपत्तिजनक है। यदि किसी स्त्री को अपने पति पर ऐसा ही सन्देह है तो इसका स्वाभाविक परिणाम यह होगा कि पति भी उस पर इसी प्रकार सन्देह करेगा। यदि आप अपने पति को इन सारी पावन्दियों से आज़ाद कर दें, उस पर सन्देह न करें, वह चाहे जब घर आये, उसे मत टोकें तो उसका व्यवहार आपके साथ बहुत अच्छा रहेगा। हम सब प्रकार की पाबन्दियों से घृणा करती हैं, चाहे वे हमारी स्त्रियों द्वारा ही क्यों न लगाई गई हों । आचार-भ्रष्ट व्यक्ति सभी को अपने जैसा समझते हैं। मैं कह सकती हूँ कि ऐसी स्त्रियाँ अपने कष्टों के लिए स्वयम् उत्तरदायी हैं ।
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