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संख्या २]
सामयिक साहित्य
इसलिए वह छोड़ दिया जाय । उससे तो गुजराती ख
विदेशों में भारतीय छात्र अच्छा है, अतएव 'ख' के नये स्वरूप के लिए विशेषज्ञों . इस समय इंग्लैंड में १३२५ भारतीय विद्यार्थी से सूचनायें मँगवाई जायँ ।
विभिन्न विषयों की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इनके . (११) अ, झ, ण की जगह बम्बई टाइपवाले अ, झ, सम्बन्ध में लन्दन के हाई कमिश्नर ने हाल में एक ण स्वीकार किये जायँ और ल, श की जगह हिन्दी के ल, रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिससे इनकी स्थिति का पता श रक्खे जायँ । 'क्ष' का 'क्ष' यह रूप स्वीकार किया जाय, चलता है। इसी रिपोर्ट के आधार पर बनारस के किन्तु बीजगणित आदि वैज्ञानिक कामों के लिए 'क्ष' 'हिन्दी-केशरी' ने एक अग्रलेख लिखा है, जिसका लिखा जाय 'क्ष' नहीं।
कुछ अंश इस प्रकार है(१२) दीर्घ 'ऋ' और 'लु' ये वर्ण प्रांतीय भाषाओं इस रिपोर्ट से मालूम होता है कि ब्रिटेन के विश्वमें नहीं आते, अतएव पढ़ाने में ये छोड़ दिये जायें। विद्यालयों और कालेजों में १३२५ छात्र नियमित रूप से
(१३) वर्तमान स्थिति में देवनागरी वर्णमाला का नाना प्रकार की विद्या पढ़ रहे हैं। इनमें से प्रायः ४०० स्वरूप प्रेसवालों के लिए निश्चित कर देने की आवश्यकता छात्र चिकित्सा-विद्या, २६० इंजीनियरिंग और टेकनालोजी, जान पड़ती है। अर्थात् घ और ध, भ और म, थ, य ३०० पार्ट-विभाग, १२० अर्थशास्त्र और बाकी विज्ञान तथा र, श, ङ, झ, द, ह, ट, ठ, ड, ढ, क, फ श्रादि की शिक्षा पा रहे हैं । इस रिपोर्ट से यह भी मालूम हुआ अक्षरों के मान्य स्वरूपों की प्रेसवालों को आवश्यकता है। है कि प्रायः ७० भारतीय छात्रायें भी इंग्लैंड के विश्वइसलिए नागरी वर्णमाला के नीचे लिखे स्वरूप की हम विद्यालयों में शिक्षा पा चुकी हैं। यह संख्या अधिक नहीं सिफ़ारिश करते हैं।
ना में भी बहुत कम है, तो भी अ, आ, श्रि, श्रो, श्रु, , ऋ, श्रे, , ओ, औ, योरप की ऊँची शिक्षाओं में भारतीय महिलाओं का प्रवेश अऽ, आऽ, अं, अः, क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, कोई तुच्छ बात नहीं है। ञ, ट, ठ, ड, ढ, ए, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, इंग्लैंड की डिगरियों का भारतवर्ष में विशेष आग्रह है, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, ळ, क्ष, श, ॐ, श्री। क्योंकि सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं में इंग्लैंड की
(१४) संयुक्ताक्षर बनाने में जिन अक्षरों में पाई है, पढ़ी हुई विद्या का बड़ा आदर होता है। आर्थिक लाभ उनकी पाई हटा दी जाय । और बिना पाईवाले अक्षरों के के साथ ही सम्मान-प्राप्ति के लोभ के कारण योरप में श्रागे ' ' ऐसा संयोजक चिह्न लगाने से वे अक्षर हलन्त भारतीय विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है । भारतीय विश्वसमझे जायँ । शब्द के अन्त में या स्वतन्त्र रूप से जब विद्यालयों की शिक्षा संसार के किसी भी देश के विश्वविद्याकिसी व्यञ्जन को हलन्त बनाना हो तब वह पुरानी पद्धति लयों की शिक्षा से किसी भी अंश में हीन नहीं है, लेकिन के अनुसार ही हलन्त चिह्न-द्वारा बनाया जाय । जैसे-- भारत की शिक्षा विशेष रूप से साहित्यिक है । साहित्य को विराट, अर्थात् आदि।
छोड़कर अन्यान्य कई उपयोगी विषयों में ऊँची शिक्षा पाने (१५) लिपि-समिति में सदस्यों की संख्या बढ़ाने की के लिए अभी विदेशों में जाना ज़रूरी है । यही कारण सत्ता समिति के अध्यक्ष को दी जाती है।
है जैसा कि डाक्टर टामस कोयली की रिपोर्ट से मालूम हो : (१६) काका कालेलकर से निवेदन किया जाता है रहा है कि इंग्लैंड के १३२५ भारतीय छात्रों में से ३०० कि महात्मा गाँधी जी की सूचना के अनुसार वे निरक्षर को छोड़कर बाकी सभी मेडिकल, इंजीनियरिंग, कामर्स, लोगों के लिए नागरी-लिपि को वैज्ञानिक रूप से अत्यन्त सायन्स या उस सम्बन्ध में गवेषणा-वृत्ति की उपयोगी सुलभ बनाकर उसका प्रयोग करके देखें और तब उसे शिक्षा में लगे हुए हैं । केवल भारत नहीं, पूर्वीय भूखण्ड समिति के सम्मुख विचारार्थ उपस्थित करें।
के चीन, जापान, पर्शिया, अफ़ग़ानिस्तान आदि स्वतन्त्र
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