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सख्या २]
। विवाह की कुछ विचित्र प्रथायें
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कोई बोल रहा है।" सब लोग क्रीसुक की ओर देखने लगे । क्रीसुक ने खफ़ा होकर बड़े
अरवी विवाह ज़ोर से चिल्ला कर कहा-"चल, चल । सुनती नहीं है ?" लड़की ने चिढ़ाने के लिए उत्तर दिया- "जा भी। पहले खा तो लें, फिर सोने की देखी जायगी।” सब लोग हँसने लगे। क्रीसुक की आँखों में खून उतर आया । उसने लपककर अपनी प्रेमिका को पकड़ा और उसे उठाकर अपने कन्धे पर डालने की कोशिश की। पर उसने लात-घूसे चलाये। एक लात पेट में
और एक घुसा नाक पर पड़ते ही दूल्हा साहब नाक के बल ज़मीन पर दिखाई दिये। उठ कर बड़े धीरज से क्रीसुक ने कहा "यह औरत किसी भी प्रादमी के लिए तगड़ी है। कोई इसे उठाकर अपनी गाड़ी पर ले जायगा और फिर इसकी शक्ति का उपयोग अपने काम-काज में करेगा।" फिर द्वन्द्व-युद्ध बड़ा घनघोर छिड़ा। सबसे ज़्यादा मज़ा ससुर साहब को अाया, क्योंकि दुनिया को उन्होंने दिखा दिया कि लड़की का विवाह एक योद्धा के साथ हुआ है । पर सास साहबा के नये कपड़े इस छीना-झपटी में खतरे में पड़ गये। उन्होंने चिल्लाकर अपनी लड़की से
EKAUGO कहा-"अब बस करो । अपने कौमार्य की रक्षा के लिए बड़ा अच्छा युद्ध कर चुकी । पर सोनेक जवान थी। उसने बात अनसुनी कर दी। द्वन्द्व-युद्ध में कुलाटें खाते खाते योद्धाओं ने लालटेन भी तोड़ डाली। कर रहे थे और वह युद्ध वास्तव में लोगों को बहुत दिनों अँधेरे में हाँफने की आवाज़ और अरदब में आ जानेवाले तक याद रहा। इस तरह से विवाहित हो जाने पर वे दर्शकों का चीत्कार ही सुन पड़ता था। एक लड़ती-झग- समुद्र-तट की ओर चले गये और वहाँ से तभी लौटे जब ड़ती पूरी जवान औरत को बर्फीले मकान के तंग दरवाज़े बहुत-सा मांस और बहुत-सी भालुओं की खालें उन्हें मिल से उठाकर ले जाना आसान काम नहीं था। पर क्रीसुक ने गई । लौटकर उन्होंने एक बड़ी दावत की और अपना मर्दानगी की पान में आकर अाखिर उसे भी किया। सुख और हर्ष दर्शाया। बाहर पहुँचकर भी सौनेक ने युद्ध करना न बन्द किया। जापान का हाल श्रीयुत अपटन क्लोज़ ने लिखा है। पर वह युद्ध केवल उन दर्शकों की खातिर था जो भीतर वहाँ शादियाँ दलाल तय करते हैं। वे दलाल नाकाडो न आ पाये थे। दोनों थक गये थे और दोनों लोहूलुहान कहलाते हैं। लड़की जब बड़ी हो जाती है तब लड़की के हो रहे थे, पर प्रसन्न थे । एक दूसरे के युद्ध की सराहना माता-पिता और पास का नाकाडो मिलकर तय करते हैं
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