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संख्या २]
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कि मैं उनसे हँसी कर रहा हूँ । वे समझे, मैं अपनी अज्ञा- इतिहास, अर्थशास्त्र तथा साहित्य ऐसे गंभीर विषयों को नता के कारण ऐसी बातें कह रहा हूँ। वे बोले- आप पढ़ते-पढ़ते मुझे जादू-टोने की पुस्तकों से कुछ अरुचि-सी भला इस मार्ग के बल को क्या समझे ? गुटिका एक बन उत्पन्न होने लगी थी। फिर भी मैं यह नहीं कह सकता कि सकती है। उसके लिए भी बारह वर्ष के साधन की मेरा मन सम्पूर्ण रूप से उस विषय से हट गया था। तो
आवश्यकता है। श्मशान जगाना पड़ता है । फिर भला भी कभी कभी जब मौका मिलता, ऐसे ग्रन्थों को पढ़ सैकड़ों गुटिकायें कहाँ मिल सकती हैं ?
लिया करता था। - इसके बाद जादू पर बात छिड़ी। पंडित जी ने ऐसी इम्तिहान हो चुका था। मैंने निश्चय किया कि इस ऐसी बातें सुनाई कि जी फड़क उठा। बोले, कामरूप- साल पहाड़ की सैर को न जाऊँगा। रोज़ सवेरे गंगा कमच्छा में जहाँ जागती ज्योति है, अब भी ऐसी जादू- स्नान करता और ठीक ६ बजे घूमने निकल जाता । गरिने हैं जो अादमियों को भेड़, कुत्ता, सुग्गा इत्यादि घूमते घूमते अक्सर मैं कच्चे महल्लों में निकल जाता । बना देती हैं और उनको घर में बन्द कर देती हैं। नाना लोग प्रश्न करेंगे कि वहाँ कौन-सी साफ़ हवा मिलती है । चमारिन के जादू में यह असर है कि बात की बात में मैं उनकी बात मानता हूँ कि ऐसे महल्लों में गन्दगी आप दुश्मन को हरा सकते हैं । दूर की बातें जाने दीजिए, अवश्य होती है, पर जो जो अनुभव इन महल्लों में घूमने अब भी आपके संयुक्तप्रान्त और बिहार में ऐसे ऐसे तांत्रिक से अब भी हो जाते हैं वे पक्के महल्लों में ढूँढ़ने से भी हैं कि भूत-भविष्य-वर्तमान सब बतला देते हैं | कभी मौका नहीं मिलते । शिक्षा के बाहुल्य ने वहाँ के रहनेवालों का मिला तो कुछ क्रियायें मैं खुद आपको दिखला दूंगा। दृष्टिकोण संकुचित कर दिया है। अब पक्के महल्लों में
फिर मैंने पूछा--यह सब तो ठीक है, पर क्या आप कितने आदमी हैं जो बन्दरवालों का, भालूवालों का, पर देवी का श्रावेश होता है ? क्या आप दूसरों पर देवी सँपेरों का या नटों का तमाशा देखते हैं। उनकी रुचि तो को बुला सकते हैं ?
सिनेमा-थियेटर या नाच-मुजरे में रहती है। पर कच्चे ____पंडित जी ने गर्व से स्वीकृतिसूचक सिर हिलाते हुए महल्लेवाले बाबाल-वृद्ध-वनिता सभी आज भी इन कहा-- यह आप क्या कहते हैं ? बिना देवी के प्रसाद के तमाशों को बड़े चाव से देखते हैं। जहाँ बन्दरवाले ने कोई क्रिया सिद्ध हो सकती है ? हम लोगों को वही खंजड़ी बजाई या नट ने ढोलक पर धपकियाँ दी कि श्राप आदेश करता हैं । लोगों पर भी देवी का आवेश कराया सैकड़ों की संख्या में महल्लेवालों को इकट्ठा होते देखेंगे। जा सकता है। केवल उनमें भक्ति होनी चाहिए। इन्हीं के उत्साह का फल है कि ग्राज दिन ये पुराने
इतने में छावनी-स्टेशन आ गया और बिस्तरा बटोरते आमोद-प्रमोद जीवित हैं । नहीं तो न जाने कब के खत्म हुए पंडित जी बोले - आपसे मिलकर अानन्द हुअा। हो जाते। मैं अक्सर घूमता-घामता इन महल्लों में पहुँच अभी तो मेरा वासस्थान ठीक नहीं है, पर ठीक होते ही जाता और खेल-तमाशे देखता। कभी इन महल्लों में आपसे मिलूँगा। पता तो आपका मालूम ही है। भूले-भटके जादूगर भी पा जाते ! अाम-सहित ग्राम का
मैं समझ गया कि वह मुझसे छटक रहा था और पेड़ लगा देने की क्रिया मैंने यहीं किसी महल्ले में देखी थी। किसी गहरे मामले की तैयारी में था। उनको नमस्कार अाज का दिन विशेष सुहावना था। गर्मी भी कुछ कर मैं भी चल दिया।
कम थी और सवेरे की ठंडी हवा चल रही थी। गंगा जी
से लौटते ही जलपान करके मैं हनुमान-फाटक को चल । कुछ दिनों तक तो मैं पंडित जी के बारे में बिलकुल पड़ा। रास्ते में बच्चे गुल्ली-डंडा या गोली खेल रहे थे।
भूल ही गया था। इसके दो कारण थे। पहला तो यह कि एक लड़के ने गुल्ली फेंकने में बेईमानी की। फिर क्या इधर मैं अपनी परीक्षा की तैयारी में लगा था और दूसरे था ? दोनों मार-पीट, गाली-गलौज करने लगे। उनको
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