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सख्या २]
रँगा सियार
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आने की खबर हुई। उन्होंने हँसने का यत्न किया, स्कूल के ज़माने से चली आ रही थी। मेरा ख़याल किन्तु उनकी हँसी
तो यह था कि वे से भी उनकी
मुझसे कोई बात चिन्ता ही प्रकट
छिपा नहीं रखते थे।
कम-से-कम मैने तो मेरी और
उनसे कोई अपना उनकी मित्रता
भेद नहीं छिपाया था।
"क्यों, आज कैसे उदास बैठे हो ? खैरियत तो है !" मैंने घबराकर पूछा।
हाँ, सब कुशलमंगल है। यों ही कुछ उदासी-सी आ गई है। उन्होंने कहा।
मुझे कुछ शक हो गया कि कोई ऐसी बात है जो वे मुझसे बता नहीं रहे हैं । मैंने फिर कहा"नहीं कोई बात ज़रूर है। तुम्हें बतानी होगी। मेरे
और तुम्हारे बीच कभी भेद-भाव नहीं रहा। अब क्या कोई नई बात हो गई है ?"
- उन्होंने कुछ मुसकराते कुछ लजाने हुए कहा-"अपनी बेवकूफी का क्या बखान करूँ ? जैसा किया, वैसा पाया। हाँ, रंज ज़रूर है।"
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