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संख्या २]
रँगा सियार
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सा अनन्नास मेरे हाथ में धर दिया। तुम्हीं सोचो, बैठे हैं उनके भगाने को पूजा करा रहे हैं। पिछली बेफस्न की चीज़ मेरी आँखों के सामने कोई बैठे बैठे जुमेरात को वे मुझे उसी मकान में ले गये और मॅगा दे तो मैं कैसे उल्लू न बन जाऊँगा । उस वक्त मैं एक अँधेरी-सी कोठरी में ले जाकर बोले कि इसी में उनका सचमुच पूरा मुरीद हो गया । वे दो-तीन दिन खजाना है। अयोध्याप्रसाद ने उनकी आज्ञा पाकर तक बराबर आये और रोज ही कोई न कोई चीज खोदना शुरू किया। चिराग़ जल रहा था। उसके मुझे भेंट दे गये । चीजें मेरे सामने किसी ऐसी शक्ति प्रकाश से कमरे का अँधेरा कम हो गया था। कुछ से वे मँगा देते जो मैं समझ न सकता, और मुझे उन दर खोद कर वह चिल्ला उठा कि एक देग तो दिख पर पूरी श्रद्धा हो गई। शायद इससे भी ज्यादा रही है। मैंने भी कोई चमकती हुई चीज देखी। जितनी अयोध्याप्रसाद की उन पर थी।
अपनी अमा शाह साहब ने मुझे दी कि ठोंक कर दे । ___ "एक दिन शाह जी ने कहा-मैं तुमसे बहुत खुश ज्यों ही मैंन उस लकड़ी से देग को ठोंका कि फुफकार हूँ। इससे तुम्हें यह बता देना चाहता हूँ कि तुम्हारे मार कर एक साँप फन उठा कर खड़ा हो गया। अमुक मकान में खज़ाना गड़ा हुआ है। मगर उसके "शाह साहब चिल्ला उठे। बस ! बस ! अभी वक्त मिलने के वास्ने खच करना पड़ेगा। में फकीर आदमी नहीं है। गंगा जी की भेंट बाक़ी है। इतना कह कर हूँ। मुझे तुम्हारे पैसे की ज़रूरत नहीं। मगर ग़रीबों उन्होंने मेरे हाथ से असा ले ली और साँपों का खयाल को बहुत-कुछ देना होगा। शायद कुछ गंगा जी के भी न करते हुए देग का ढंकना थोड़ा-सा उठाया। मुझे भेंट करना पड़े। “मैंने पूछा-कितना खर्च होगा और उसमें चमकती हुई अशरफियाँ-सी दिखाई दीं। वे कितनी प्राप्ति होगी ? उन्होंने कहा-यही दो-चार अरबी में कुछ पढ़ते जा रहे थे। शायद साँपों को हजार खर्च होगा। मिलने को लाखों मिल सकते हैं। शान्त रखने का मन्त्र था। इस वक्त तो उस खजाने पर साँप बैठे हैं।
__ "उस कोठरी को यों ही छोड़कर बाहर से ताला ___"मेरे मुँह में पानी आने लगा। परमेश्वर ने डाल में चला आया। शाह जी ने कहा कि ताले की मुझे बहुत-कुछ दे रक्खा था, मगर जब मेरे ही घर कोई जरूरत नहीं। उसे कोई छू नहीं सकता। मगर में लाखों और गड़े पड़े हैं तब उन्हें क्यों छोड़। मेरा दिल कव मानने लगा। शाह जी ने कहा--तो कल जुमेरात है। मुझे "दूसरे दिन अयोध्याप्रसाद ने मुझसे शाह जी के अपने उस्ताद की क़न पर हलवा चढ़ाना पड़ेगा। तरफ़ से कहा कि सौ तोले की सोने की गंगा जी की कंगालों को बाँटना होगा। आप अयोध्याप्रसाद को मूर्ति बीच संगम में मुझे डालनी होगी । फौरन बननी भेज दें कि वे अपने सामने बँटवा दें, खुद आपको चाहिए । मैंने सुनार को बुलाकर उसे मूर्ति बनाने की तकलीफ करने की जरूरत नहीं, जब जरूरत होगी, आज्ञा दी। वह हँसने लगा। मेरे ऐसे नास्तिक से उसे मैं बता दूंगा।
कभी ऐसी आशा न थी। मगर उसका क्या जाता __ "जुमेरात और मंगल को हलवा बँटने लगा। इसमें था ? वह दो-तीन दिन में बना लाया और ३,०००) मेरे ५८०) खर्च हुए। मगर पाँच सौ या पाँच हजार के नोट लेकर चला गया। की लाखों के आगे क्या हक़ीक़त है ? एक दफ़ा कुछ "शाह जी ने मुझसे कहला भेजा कि मैं हर दम देर को मैं भी गया। बड़ी बड़ी देगों में हलवा रक्खा उनका इन्तज़ार करूँ। इन्हीं चार-छः दिन में वे था। कैंगले जमा हो रहे थे। इतना मैंने भी देखा। किसी घड़ी मेरे पास आवेंगे और तब मुझे तुरन्त ___"तीन हफ्ते तक वे कुछ पूजा-पाठ भी कराते रहे। उनके साथ जाना होगा। अभी वे पूजा-पाठ में लगे मेरे पूछने पर बोले कि जो साँप उस धन के ऊपर हुए हैं और समय आते ही आ पहुंचेंगे।
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