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साहित्य
रहस्य वाद के सम्बन्ध में हिन्दी के क्षेत्र में बड़ी ग़लत फहमी फैली हुई
है। इस लेख में लेखक महोदय __ ने उसी के दूर करने का
सुन्दर प्रयत्न किया है।
सङ्केतवाद
लेखक, श्रीयुत गुलाबप्रसन्न शाखाल, बी० ए० रङ्केत वास्तव में विश्व की प्रथम का केवल कविता के लिए ही प्यार करती है और इसी
और अन्तिम सुन्दर कविता लिए कवि का रहस्य-लोक कला की विभूति में जगमगाने का प्राण है। मानव-जीवन लगता है। प्रकृति की पवित्रता के महत्त्व की आनन्दपूर्ण के अनुसार ही कविता, रूप स्वीकृति और सृजित सुन्दरता के प्रति तीव्र प्रेम के कारण पर नहीं, अप्रत्यक्ष सत्य द्वारा वह सार्थक एवं प्रत्यक्ष सङ्केतों को सजाता है तथा निराजीवित रहती है। सङ्केतवादी कार का साकार में सफल और साधना-पूर्ण रूपान्तर करता
कवि कलाकार एवं दार्श- है। इस प्रयत्न में उसकी साधना की सफलता व्यक्तिगत निक दोनों है। दार्शनिकता कवि के मननशील मस्तिष्क के अनुभवों पर निर्भर रहती है और उसके चित्रण में स्वयं रस में बरस पड़ती है और कला अन्तगनुभूति की चम- के जीवन-पथ के विभिन्न दृश्यों का सौन्दर्य निहित रहता त्कारपूर्ण भावज्ञता में रंग जाती है । कविता को मापेक्ष है। वह अपने जीवन की प्रेरणा से संसार के अन्यतम सत्य अमरता इन्हीं दो स्तम्भों पर स्थित रहती है। कवि सतत से परिचित बनता है और टामस कार्लाइल के शब्दों में एवं अविरल साधना के साथ आत्मा के कार्य कलापों का विश्व के दिव्य-सत्य में प्रवेश करता है। व्यक्तिगत अनुचिन्तन करता है; उत्साह के साथ सत्य का अनुसन्धान भव ही सङ्केतवादी कलाकार की कृति की उद्भावना-शक्ति करता है और परमात्मा के प्रति आत्मा के कामनोद्गारों बनता है और इसी लिए उसकी कविता में स्वयं के जीवन का वर्णन करता है। किन्तु उसकी खोज वैज्ञानिक खोज के मनन, घटनाक्रम और अनुभूति का आधार रहता है। नहीं है । कलाकार कवि, सौन्दर्योपासना की मदिरा पीकर, उसका रचना उसके अन्तर्तम प्रदेश का विकास है । विश्व ऐन्द्रिय जग की सुन्दरताओं का प्रेमोन्माद में अनुभव की दैविक भावना जो सङ्केतवाद का मूल है, अात्मा की करता है; प्रत्यक्ष छवि को अनन्त सौन्दर्य में गुम्फित पाता अभिव्यक्ति है और वही अभिव्यक्ति वास्तव में कविता के है और मानव-जीवन की सरलताओं का निरख-निरख सहा- प्रत्यक्ष सौन्दर्य का अन्तर्धान होने पर पाठक के हृदय पर नुभूति में द्रवीभूत हो जाता है । वह अप्रत्यक्ष सत्य का अंकित-सी जान पड़ती है। मनन और प्रत्यक्ष विश्व को प्यार करता है। स्निग्ध सङ्केतवादी साहित्य विशेषरूप से आधुनिक संसार की
आकाश, निर्मल सागर, प्रतीक्षा-प्रफुल्ल-पुष्य और प्रेरणा- उपज है और उसका प्रत्यक्ष स्वरूप तो हमें बीसवीं शील प्राणी उसके ऐन्द्रिय सौन्दर्य की वस्तुएँ हैं । इन्द्रिय शताब्दी में ही दिखा है इसके पूर्व सङ्केतवाद अपने
और आत्मा का अथवा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष का यही स्वतन्त्ररूप से परिचित नहीं था। साहित्य-संसार में यत्रमधुर-मिलन ही सङ्केतवाद की कविता का प्राण है। तत्र रहने पर भी उसका निज का अस्तित्व नहीं था।
सङ्केतवादी कवि की प्राण-प्रसूत प्रतिभा काव्य-विषय वर्तमान जीवन की जघन्यता ने उसका आविर्भाव अनि
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