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संख्या २]
प्रोझा
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दुर्भाग्य से मेरी भावज बीमार पड़ी। ज्वर बड़े वेग से अाया उसके प्राणों के ज़िम्मेदार नहीं । मंगल को पंडित जी ने
और वायु के ज़ोर से वह कुछ अंड-बंड भी बकने लगी। गंगा-स्नान किया। देवी का दर्शन किया और घर आकर पंडित जी से पूछा गया। उन्होंने बतलाया, भूत-बाधा है। एक चौड़े मुँह की हँड़िया और गुग्गुल-लोबान, पुष्प, ज़ोर तो उसका अधिक है, पर वश में किया जा सकता कपड़ा इत्यादि मँगाया। सबके सामने गंगाजल से गहने है। उसका स्थान उन्होंने घर की स्त्रियों के गहनों में धोये गये और पंडित जी ने उनको हैडिया में रखकर बतलाया और कहा कि अगर गहनों की शुद्धि नहीं होगी उसका मुँह बाँधकर अपनी कोठरी में एक गड्ढा खोदतो वह घर की सब स्त्रियों को सतावेगा। बाबू जी, हम कर रख दिया, और हम लोगों को फ़ौरन चले जाने लोगों की कमाई इतनी तो नहीं है कि नित नित अपनी को कहा । पंडित जी की बातों ने हम पर ऐसा प्रभाव स्त्रियों को गहने गढ़वा सकें, फिर भी कुछ न कुछ डाल रक्खा था कि कोई औरत-मर्द जूं तक न बोला। ज़ेवर तो सब स्त्रियों के पास होते ही हैं। और मेरे घर में सबके मुखों पर भय की रेखा देख पड़ती थी। इसी तरह भी सब भाइयों की स्त्रियों के पास मिला कर क़रीब हज़ार करीब १२ बजे मुझको अाहट मालूम हुई कि कोई गड्ढा पन्द्रह सौ का गहना था। स्त्रियाँ गहनों को अपने प्राणों खोदकर हँडिया निकाल रहा है। मन में खटका हुआ । से भी बढ़कर समझती हैं, पर भूत का डर जो चाहे सा पर पंडित जी के आदेश को यादकर चुप रह गया। करा डाले। सब औरतों ने एक मत होकर अपने गहनों ज्यों-त्यों करके किसी तरह रात बीती और सवेरा होते ही से भूत निकलवा डालने का पक्का इरादा कर लिया। हम सब पंडित जी की कोठरी की ओर दौड़े। दरवाज़ा खुला पंडित जी ने अाखिरी मंगल इस क्रिया को सम्पन्न करने के हुअा था, पर पंडित जी अपने बिस्तरे और हमारी स्त्रियों लिए रक्खा। और इस बात का महल्ले के सब लोगों में के गहनों के सहित ग़ायब थे। स्त्रियों ने बड़ा कुहराम फैला दिया कि उस दिन भूत सिद्ध किया जायगा। इस मचाया। महल्लेवाले इकट्ठे हो गये, पर अब चिड़िया बात की भी उन्होंने हिदायत कर दी कि दस बजे के बाद उड़ चुकी थी। हम कर ही क्या सकते थे ? पुलिस में उस गली से कोई न गुज़रे, नहीं तो भूत हमला कर बैठेगा रपट लिखाई; पर सरकार, अभी तक उस बदमाश का पता
और फिर जान बचाना मुश्किल हो जायगा। पंडित जी नहीं है । हम लोगों की जितनी कमाई थी, लुट गई । अब का महल्ले में अातंक तो पूरा था ही। सब लोग उनकी हम कहीं के न रहे। इतना कह कर बुधू चुप हो गया। बात सच मान गये और मंगल को दिया जलते ही मेरी उसकी आँखों में आँसू भर आये। गली में सन्नाटा छा गया। मारे डर के हमारे महल्ले उस दिन से मेरी भूत विद्या से रही-सही श्रद्धा जाती के कुछ मनचले युवक सिनेमा तक देखने म गये। रही और आज तक मैंने किसी अोझा को अपने पास फटपंडित जी ने यह भी कहा कि हमारे घर की स्त्रियाँ घर के पिछले कने तक न दिया। सुना कि पंडित जी किसी दूसरे शहर हिस्से में रहें। और उनकी एक हिदायत थी कि कैसा भी में इसी तरह धोखा देते हुए पकड़े गये, पर बुद्धू के गहने खटका किसी को मालूम हो, चूं तक न करें। नहीं तो वे फिर वापस नहीं मिले ।
फा. ७
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