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________________ सख्या २] रँगा सियार १४७ आने की खबर हुई। उन्होंने हँसने का यत्न किया, स्कूल के ज़माने से चली आ रही थी। मेरा ख़याल किन्तु उनकी हँसी तो यह था कि वे से भी उनकी मुझसे कोई बात चिन्ता ही प्रकट छिपा नहीं रखते थे। कम-से-कम मैने तो मेरी और उनसे कोई अपना उनकी मित्रता भेद नहीं छिपाया था। "क्यों, आज कैसे उदास बैठे हो ? खैरियत तो है !" मैंने घबराकर पूछा। हाँ, सब कुशलमंगल है। यों ही कुछ उदासी-सी आ गई है। उन्होंने कहा। मुझे कुछ शक हो गया कि कोई ऐसी बात है जो वे मुझसे बता नहीं रहे हैं । मैंने फिर कहा"नहीं कोई बात ज़रूर है। तुम्हें बतानी होगी। मेरे और तुम्हारे बीच कभी भेद-भाव नहीं रहा। अब क्या कोई नई बात हो गई है ?" - उन्होंने कुछ मुसकराते कुछ लजाने हुए कहा-"अपनी बेवकूफी का क्या बखान करूँ ? जैसा किया, वैसा पाया। हाँ, रंज ज़रूर है।" SeSudhamaswamiGyanbhandar-Umara. Surat www.umaragvanbhandar.com
SR No.035248
Book TitleSaraswati 1935 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevidutta Shukla, Shreenath Sinh
PublisherIndian Press Limited
Publication Year1935
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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