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संख्या २]
जापान के रास्ते में
[ शाङ-घाई- चीनी सर्कार का भवन ]
बाद में फ्रांसवालों को छोड़ बाक़ी ने अपने हिस्से एक में कर दिये और उसका 'इन्टर्नेशनल कन्सेशन' नाम रक्खा। तो भी इस भाग पर अँगरेज़ों का ही सबसे अधिक प्रभाव है। इसका एक प्रमाण यह है कि हाङका की तरह यहाँ भी सड़कों के चौराहों पर सिक्ख कान्स्टेबल ही रास्ते की व्यवस्था करते हैं । बृहत्तर शाङ्घाई खास चीनी नगर है । सन् १६३२ में जापान की तोपों ने यहीं प्रलयकाण्ड मचाया था ।
हमारे सामने की सड़क पर सैकड़ों मोटर और रिक्शा खड़े थे | बैजनाथ के पंडों की भाँति उन्होंने हमें घेर लिया । एक टैक्सीवाला तीन डालर घंटे के हिसाब से शहर दिखलाने के लिए तैयार था। एक डालर आजकल प्रायः अठारह आने का है। लेकिन हमें पहले डाकखाने से निपटना था । पास में ही 'नार्थ-चाइना डेली न्यूज़' की विशाल इमारत थी। हाङ-का के बाद समाचारपत्र पढ़ने को नहीं मिला था और चीन के सम्बन्ध में कुछ साहित्य भी लेना था, इसलिए हम पहले वहाँ गये । इसका साप्ताहिक 'नार्थ-चाइना - हेरल्ड' के नाम से निकलता है। दो संख्यायें साप्ताहिक और एक दैनिक की लीं। चीन-संबंधी कोई अच्छा साहित्य नहीं मिला । रास्ते में एक सरदार साहब से बड़े डाकखाने का रास्ता पूछा। उन्होंने बड़ी नम्रता के साथ बतलाया। डाकखाना दो
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[ शाङ्-घाई की सड़क ]
घुमावों के बाद था ।
यह मुहल्ला खास कर बड़ी बड़ी योरपीय कम्पनियों का है । बालीशान मकानों में चीजें खूब सजाकर रक्खी गई हैं। खैर, घूम-धाम कर हम वहाँ पहुँचे । तीन पार्सल और छः चिट्ठियाँ डालीं । (हाङकाजू से भी कोई चिट्ठी नहीं डाली थी)। वहीं एक सरदार साहब से भेंट हो गई। उन्होंने ३ डालर घंटे पर टैक्सी कर देने को कहा। हमने पहले समझा, शायद कोई हिन्दुस्तानी ड्राइवर होगा। लेकिन टैक्सी के अड्डे पर जाने पर मालूम हुआ, चीनी है और अँगरेज़ी के दोएक शब्द ही जानता है । पास में ही एक हिन्दुस्तानी होटल था, जहाँ हमने खाना खाने के लिए कहला दिया ।
दस बजे हम शहर देखने चले। दो घंटे में सब देख लेने का निश्चय हुआ । तीस लाख की आबादी (कलकत्ता और बम्बई दोनों मिलाकर भी उतने नहीं) का शहर क्या दो घंटे में देखा जा सकता है ? पहले हमारी टैक्सी बृहत्तर शाङ-घाई (चापइ) की ओर चली । रास्ते में जापानी अड्डा मिला। सैनिक मोटर (आर्मर्डकार) तोपों के साथ तैयार खड़े थे । कुछ ही आगे म्युनिसिपल बाग़ है। भीतर जाने के लिए कुछ सेंट देने पड़ते हैं । भीतर गये । अधिक मैदान और कुछ वृक्ष हैं । उस वक्त बंदूक लिये हुए चीनी सिपाही लुकाछिपी खेल रहे थे। चीनी सिपाहियों और उनके जनरलों के बारे में बाद में
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