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सरस्वती
[भाग ३६
न हो तो ज़मीन को वह नीलाम पर चढ़ा सकता है, लेकिन जिनका क़ानूनी ज्ञान परिमित है। पहला शब्द है “किस्ती नीलाम में जितने दाम अावेंगे, चाहे कम या ज्यादा, उसी कीमत"। किसी ज़मीन की किस्ती कीमत वह रकम है जो में इस कानून के अनुसार उसकी डिगरी का सारा मता- वसूल की कमी का लिहाज़ रखते हुए उस ज़मीन के लबा चुकता समझा जायगा। यह कानून ३० अप्रेल मौजूदा मुनाफ़े से ज़मींदार और उसके कुटुम्ब के खर्च सन् १९३५ के पहले जितने कर्ज लिये गये हैं सब पर लागू तथा वसूलयाबी के खर्च को निकालने के बाद २० वर्ष है। और १ नवम्बर १६३६ तक ही कायम रहेगा। अगर के अन्दर वसूल हो सकती है। उदाहरण के लिए मान गवर्नमेंट चाहे तो गज़ट में नोटिस निकालकर इस कानून लीजिए कि 'क' एक गाँव है। इसकी आज-कल की कुल की मियाद बढ़ा सकती है । (दफा ६)
निकासी २,०००) साल है पहले २,५०० थी, लेकिन ५००) ___गवर्नमेंट जो कायदे ज़मीन की कीमत तय करने के छूट हो गई। मालगुज़ारी १,०००) है । ज़िलेदार या सिपाही लिए बनायेगी, पहले उन्हें गज़ट में प्रकाशित करेगी, व्यव- जो इस गाँव से लगान वसूल करते हैं उनकी तनख्वाह स्थापक सभा के सभासदों के पास उस मसविदे की एक वगैरह पर २००) साल खर्च करना पड़ता है। किसी भी एक नकल भेजेगी और कौंसिलों में पास होने के बाद गाँव से पूरी पूरी रकम वसूल नहीं होती। इस गाँव में उन कायदों पर अमल दरामद होगा।
१००) प्रतिवर्ष औसतन दब जाता है। ऐसी हालत में (४) ऋणग्रस्त रियासतों का कानून 'क' गाँव की क़िस्ती कीमत निम्नलिखित होगी'ऋणग्रस्त रियासतों का कानून' भी संयुक्त- २,०००) निकासी मौजूदा मालगुज़ारी मौजूदा १,०००) प्रान्तीय व्यवस्थापक सभा से पास होकर १० अप्रेल १६३५
खर्च वसूलयाबी २००) को गवर्नर-जनरल-द्वारा स्वीकृत हुआ और ३०
न वसूल होनेवाली रकम १००) अप्रेल से इस प्रान्त में उस पर अमल दरामद
ज़मींदार का घर का खर्च ५०० हो रहा है। यह कानून गढ़वाल, नैनीताल और
मुनाफ़ा २००) अल्मोड़ा के जिलों में लागू नहीं है और न देहरादून-ज़िले के जौसरवावर-परगने में ही लागू है। इस कानून का
२,०००) उद्देश यह है कि क़र्ज़ से दबी हुई रियासतें बिकने और इस हिसाब से प्रतिवर्ष २००) का मुनाफ़ा हुआ और दिवालिया होने से बचाई जायँ । कानून बनानेवालों के २० वर्ष में ४,०००) की बचत हुई। ४३ फ्री सदी के मतानुसार व्यापार में मन्दी आ जाने के कारण और हिसाब से सूद लगाने पर २,०००) के करीब की रकम कृषि-उपज का भाव गिर जाने की वजह से ज़मींदारवर्ग २० वर्ष में ४,०००) हो जायगी। इसलिए २,०००) की पर कर्ज का भार बहुत बढ़ गया है। अगर क़र्ज़ की यह रकम 'क' गाँव की किस्ती क़ीमत हुई। अदायगी में आज ज़मींदार की ज़मीन बेची जाने लगे किसी ज़मीन की बिक्री की कीमत' वह रकम है जो तो बहुत-सी रियासतों के तबाह हो जाने का डर है। १३३८ फ़सली के पहले उस ज़मीन को बेचकर मिल इसलिए यह नया कानून बनाकर यह इन्तिज़ाम किया सकती थी। गया है कि रियासतों का क़र्ज़ रियासत की आमदनी से उदाहरण के लिए 'क' गाँव.अगर आज बेचा जाय ही किस्त करके २० वर्ष के अन्दर अदा कर दिया जाय। तो मान लीजिए १०,०००) का बिकेगा, क्योंकि छूट की किस्तों के सम्बन्ध में गवर्नमेंट भी सहायता करेगी। वजह से लगान में भी कमी आ गई है और अनाज का
इस कानून को अच्छी तरह समझने के लिए कुछ भाव भी गिर गया है। लेकिन जब भाव मन्दा नहीं हुआ शब्दों का अर्थ और उनकी परिभाषा जान लेना आवश्यक था, अर्थात् १३३८ फ़सली के पहले यह गाँव १५,०००) है। विशेषकर उन लोगों के लिए जो वकील नहीं हैं और का बिकता। ऐसी हालत में इस कानून के मुताबिक 'क'
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