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विवाह की कुछ विचित्र प्रथायें
वि
वाह संस्कार संसार में सब कहीं है, पर सब जगह एक-सा नहीं है । इसकी बड़ी ही विचित्र प्रथायें प्रचलित हैं। श्रीयुत कार्नोन ने अफ्रीका की प्रथात्रों का कुछ विवरण लिखा है । वे सात वर्ष तक वहाँ की असभ्य जातियों के बीच रहे हैं।
तो प्रायः वहाँ की सभी जातियों की प्रथायें विचित्र हैं, पर 'वाकोनोंगो' नामक जाति की प्रथा विशेषतः उल्लेखनीय है । पश्चिमी टैगानीका के प्रदेश में छोटे छोटे गाँवों में इस जाति के लोग निवास करते हैं । ये लोग स्वस्थ और अच्छे आचरणवाले होते हैं । इनके यहाँ दस वर्ष की कन्या का पन्द्रह वर्ष के लड़के के साथ विवाह होता है, जिसमें कन्या वर के हाथ बेच दी जाती है । पर शायद ही कभी उनका यह विक्रय उनकी इच्छा के विरुद्ध होता हो । साधारणतः उनका वैवाहिक जीवन सुख पूर्ण होता है। पति अपनी पत्नी के साथ कभी बुरा व्यवहार नहीं करता और पत्नी भी पतिव्रता होती है। यदि वह दुराचारिणी हुई और दुराचार में पकड़ी गई तो तलाक़ भाले की नोक पर होता है। इसलिए जिसे अपनी जान प्यारी होती है वह सदाचारिणी ही रहती है । मगर वर्ष में एक दिन ऐसा होता है जब उस दिन रात को पत्नी जितने उपपति चाहे, कर सकती है। जब श्रनाज कट कर आ चुकता है तब दावतें होती हैं और शादी का बाज़ार गर्म होता है । इस त्योहार की प्रथम रात्रि में स्त्रियाँ उपपतियों को वर लेने में पूर्णतया स्वतन्त्र होती हैं । वाकोनांगो में विवाह या तो प्रेम के कारण या अपनी
सत्ता बढ़ाने के लिए होता है। इन लोगों के प्रायः बहुत-सी पत्नियाँ होती हैं, पर पहला विवाह प्रायः प्रेम के कारण ही होता है । इसलिए पहली पत्नी प्रधान पत्नी कहलाती है और वह अपनी सौतों को नौकरानियाँ समझती है। परिवार में मामा प्रधान व्यक्ति समझा जाता है । वह 'माजोम्बा' कहलाता है। वही शादियों का दलाल होता है । पत्नी का मूल्य वही तय करता है। जो पति अपनी पत्नी का जितना ही अधिक दाम देता है वह उससे उतना ही अधिक अपना गौरव मानता है । और जो पत्नियाँ कम दामों में खरीदी जाती हैं वे उस बात से लज्जित रहती हैं। २२५ रुपये सबसे ऊँचे दाम हैं, पाँच बैल मामूली दाम हैं और दस बकरे ग़रीबों के दाम हैं। यह भी हो सकता है कि "दाम एक दफ़े में ही न दिये जायँ और धीरे धीरे अदा किये जायँ, पर ऐसा करने में बड़ी बेइज्जती समझी जाती है। दाम तय होने के पहले दोनों ओर की वंशावलियों के नाम गिनाये जाते हैं । प्रत्येक बच्चा ५०० वर्ष के या उससे अधिक के अपने पूर्वजों के नाम जानता रहता है। यदि पूर्वजों के नाम दोनों ओर एक हुए तो विवाह नहीं होता है । दाम तय हो जाने पर ज्योतिपी बुलाये जाते हैं । यदि उनकी भी सम्मति अनुकूल हुई तो विवाह तय होता है शादी अक्टूबर के महीने में होती है और तीन दिन उसमें लगते हैं । वर-वधूं एक दूसरे को तीसरे दिन के अन्त तव नहीं देख पाते हैं। शादी की रात को उन दोनों के बीच में माता-पिता, माजोम्बा, बहन, भाई इत्यादि रहते हैं शादियों से बहुत दिन पहले शराब बनना शुरू हो जाती १३२
लेखक, श्रीयुत मार्कण्डेय वाजपेयी एम० ए०, एल- एल० बी०
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