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संख्या २]
कर्ज-सम्बन्धी कानून
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कानून के मुताबिक तबदीली की जाय। अदालत वापस करा देगी। (१३-१४) अगर जमा की हुई रकम दरख्वास्त पाने पर इस डिगरी के मतालबे में ऊपर लिखे काफ़ी नहीं है तो अदालत यह हुक्म देगी कि बाकी रुपया हुए ब्याज की दर के अनुसार ब्याज लगा कर कमी कर एक निश्चित मियाद' के भीतर जमा कर दिया जाय । इस देगी। नई दर के लिहाज़ से जो अधिक रक़म महाजन बाकी रकम के जमा होने के बाद अदालत रहन के छोड़ को सूद में मिल चुकी होगी वह सूद में न समझी जाकर देने का हुक्म दे देगी। (१६) मुरतहिन को अख्तियार असल की अदायगी में समझी जायगी । (३०) होगा कि रहन न छूटने के सम्बन्ध में अपनी उदारी . ३० अप्रेल १६३५ के बाद अगर किसी रकम पर पेश करे। यह प्रकट ही है कि रहन का मतालबा तय इतना सूद चढ़ जाय कि असल के बराबर हो जाय तो करने में अदालत केवल उतना ही ब्याज दिलायेगी जितने फिर उसके बाद उस रकम पर अगर वह कर्ज़ (बाज़मा- की नये कानून में इजाज़त है। नत) है तो केवल ३३ फ़ी सदी सूद दिलाया जायगा; और हिसाब-३० अप्रेल सन् १६३५ के बाद हर एक दो फ़ी सदी और, अगर क़र्ज़ (बिला ज़मानत) है । (३१) महाजन के लिए यह आवश्यक है कि चाहे वह छोटे किसान
३० अप्रेल के बाद अगर किसी ने (बिला ज़मानत) को क़र्ज़ दे रहा हो या बड़े ज़मींदार को, नियमपूर्वक सारे क़र्ज़ लिया हो और वह अपना क़र्ज़ दो वर्ष के अन्दर दे दे तो लेन-देन का बाकायदा हिसाब गवर्नमेंट के मुकर्रर किये हुए उस क़र्ज़ पर (बाज़मानत) क़र्ज़ का सूद लगेगा। (२६) फारम पर लिखे और रक्खे। महाजन के लिए यह भी
ऊपर दिये हुए नकशों से बाज़मानत और बिला आवश्यक है कि वह प्रत्येक क़र्ज़ के शुद्ध और दुरुस्त ज़मानत क़र्ज़ के सूद की दर में फ़र्क मालूम हो सकता है। हिसाब की एक नकल अपने या अपने मुख्तार के दस्तखत
रहन-सम्बन्धी कानून-नये कानून के मुताबिक से कर्जदार किसान के पास प्रतिवर्ष गवर्नमेंट-द्वारा निश्चित 'किसान'-शब्द की परिभाषा में आनेवाले किसान का किया की हुई तारीख के अन्दर भेज दे । इस हिसाब में उस हुआ रहन वा कब्ज़ा जिसमें ज़ेरायती जायदाद का मुनाफा वर्ष के जितने जमा-खर्च हैं, सब स्पष्ट लिखे हों। महाजन मुरतहिन को मिलता जा रहा है, २० वर्ष से अधिक का इस हिसाब में सूद उस दर से ज्यादा नहीं लगा सकता जायज़ नहीं समझा गया है। अब अगर कोई महाजन २० जो 'एग्रीकलचरिस्ट्स रिलीफ़ एक्ट' में मंजूर हुआ है। वर्ष से अधिक मियाद का रहन लिखावे तो लिखा-पढ़ी होते गवर्नमेंट ने यह तय किया है कि महाजन को चाहिए कि वह हुए भी जायदाद २० वर्ष के बाद छूट जायगी। जो रहन अपना हिसाब प्रतिवर्ष या तो दशहरा को या दिवाली को या ३० अप्रेल १६३५ से पहले रक्खे गये हैं उनके बारे में यह ३० सितम्बर को या ३१ दिसम्बर को या ३१ मार्च को बन्द कानून बना है कि तमादी आरिज़ होने के पहले और कर दे। हिसाब बन्द करने के एक महीने के अन्दर ही मूलधन वाजबुल अदा होने पर राहिन अगर अपनी जाय- कर्जदार के पास हिसाब की नकल जवाबी रजिस्ट्री से दाद छुड़ाना चाहे तो अदालत में अपनी जायदाद को पहुँच जानी चाहिए, जिससे उसे यह मालूम हो जाय कि छुड़ाने के लिए या उस पर कब्ज़ा हासिल करने के लिए उसके ऊपर कितना बाकी है और उस साल उसके हिसाब दरख्वास्त दे सकता है। दरख्वास्त के साथ अदालत में में कितना जमा-खर्च हुआ है। उतनी रकम भी जमा करनी होगी जितनी उसके खयाल अगर किसी कर्ज के मुकद्दमे के दौरान में अदालत में रहन छुड़ाने के लिए काफ़ी है । (१२) दरख्वास्त पाने को यह मालूम हो कि महाजन ने किसी कर्जदार को वसूल पर और रकम के जमा हो जाने पर अदालत मुरतहिन शुदा रकम की रसीद देने से इनकार किया है या देने में को तलब करेगी और अगर मुरतहिन जमा की हुई रकम बेपरवाही की है तो इस अपराध में वह महाजन से ऋणी को मंजूर कर लेगा तो उसे उस रकम को देकर उससे को उस बिना रसीदवाली रकम से दोगुना तक हरजाना राहिन की जायदाद और उस सम्बन्ध का दस्तावेज़ दिला सकती है।
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