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सरस्वती
[भाग ३६
मिली । इस बीच में चीनी सोवियट ने अपना प्रभाव और उन्हें उस ओर अधिक उत्साहित नहीं कर सकी । चाङ-कैअधिक बढ़ा लिया, तो भी उसके मार्ग में अनेक बाधायें शक ने पहले के युद्धों में देख लिया था कि साम्यवादियों थी । कोई भी बंदरगाह हाथ में न रहने से समुद्र-द्वारा को हराकर एक कोने से दूसरे कोने में भगा देने से कोई चीनी साम्यवादी बाहरी देशों से सम्बन्ध स्थापित नहीं कर फल नहीं, क्योंकि वैसा करने में एक ओर तो नान-किङ सकते थे । स्थल-मार्ग से भी उनका रूस के साथ कोई की भारी-भरकम सेना की शक्ति क्षीण हो जाती थी और सम्बन्ध न था । इस प्रकार अस्त्र-शस्त्र तथा दूसरी मशीनें साम्यवादी पीछे से लौटकर उन स्थानों को फिर अपने या तेल आदि आवश्यक सामग्री वे मँगा नहीं सकते दखल में कर लेते थे। इसलिए चाङ ने साम्यवादियों के थे। उन्होंने अनेक बार समुद्र तक पहुँचने की कोशिश की, छोड़े स्थानों पर जगह जगह ब्लाक-हौस या फ़ौजी किन्तु उनके इस काम में नानकिङ्-सरकार (चीनी राष्ट्रीय चौकियाँ टेलीफोन और बेतार के साथ बैठानी शुरू की। सरकार, चाङ-कै-शक जिसके सर्वेसर्वा हैं) ही नहीं, विदेशी यह अप्रेल का महीना चीनी साम्यवादियों के लिए बहुत शक्तियाँ भी बाधक थीं। फलतः विदेशी गनबोटों के मारे हानिकारक सिद्ध हुआ। अप्रेल के पहले सप्ताह में चीनी उन्हें फिर पीछे हट जाना पड़ा। उस समय इन साम्य- सोवियट का प्रधान सेनापति चू-ते मारा गया। चू-ते, होवादियों को अस्त्र-शस्त्र मिलने का एक ही रास्ता था, लुङ् और सू-ची-सेन- चीनी सोवियट के ये तीन प्रधान और वह था नानकिङ्-सरकार की बाग़ी सेना का उनकी स्तम्भ थे। चू-ते ने जर्मनी में शिक्षा पाई थी और वह साम्य
जाना और यह अक्सर हुआ भी। इसी प्रकार वादियों का सर्वप्रिय नेता था। साम्यवादी सेना कितने ही नानकिङ-सरकार के पाँच हवाई जहाज़ भी उनकी ओर दिनों तक अपने नेता के शव को लाल झंडे के साथ एक चले गये, किन्तु एक बार का भरा पेट्रोल सदा तो नहीं जगह से दूसरी जगह लेती फिरी। इसी महीने में उन्हें चल सकता था, और न टूटे-फूटे पुजें ही वहाँ मिल सकते कई जगह हार खानी पड़ी और कितने ही और नेताओं से थे, इसलिए वर्तमान लड़ाई में उनका कोई उपयोग न हाथ धोना पड़ा। अपने आदर्श के लिए प्राण की बाज़ी हो सका । चाङ्-कै-शक ने १६३२ वाले जापानी आक्रमण लगाना कितना आसान है, इसका उदाहरण है इन में तो ऐसी चुप्पी साधी कि उनके होने में भी सन्देह नेताओं में एक साम्यवादी नेता तु-चि-लुङ । उसे विचार मालूम होता था। किन्तु जापान के अपना काम खत्म कर बदल देने के लिए बहुत प्रलोभन दिये गये, किन्तु उसने लेने पर उन्होंने फिर साम्यवादियों की ओर मुँह किया। स्वीकार नहीं किया । फलतः १२ अप्रेल को फू-चाव में उन्होंने पिछले अनुभवों से भले प्रकार जान लिया था कि उसे फाँसी दे दी गई। स्थल-सेना पर वे पूरा विश्वास नहीं कर सकते। इसके इस वक्त नान्-किङ्-सरकार की सारी शक्ति साम्यलिए उन्होंने मध्यम श्रेणी के युवकों की हवाई सेना तैयार वादियों का जड़मूल से विनाश करने पर लगी हुई है। की। ५०० हवाई जहाज़ों का बेड़ा सुसजित कर अब वस्तुतः साम्यवादियों की अधिकृत भूमि बहुत-कुछ फिर साम्यवादियों पर हल्ला बोल दिया गया। नान्- छिन चुकी है, और वे इधर से उधर खदेड़े जा रहे हैं। किङ की विशाल और साधनसम्पन्न स्थल-सेना तथा सरकार उनके साथ गोरीला युद्ध के लिए तैयार उससे अधिक विनाशक उसके हवाई जहाज़ों ने अब की है; किन्तु यह काम उतना आसान नहीं है । खब तैयार होकर चढाई की। साम्यवादियों ने वीरता के इस वक्त 'चीनी सोवियट सेना' की संख्या पचास साथ मुताबिला किया, किन्तु कब तक । आखिर एक हज़ार बतलाई जाती है, जो तीन टुकड़ियों में बँटी हुई के बाद एक स्थान उनके हाथ से निकलता गया। नान्- है। उसके एक बड़े भाग ने कन्-सू (तिब्बत और. मंगोकिङ के कुछ सिपाही इस बार भी दूसरी ओर जा मिले; लिया के बीच का चीनी प्रान्त) में निकल जाने की कई किन्तु हवाई जहाज़ों की मार और साम्यवादियों की हार बार कोशिश की, किन्तु उनका रास्ता रोक दिया गया।
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