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सरस्वती
[ भाग ३६
पत्थर भी कुछ कीमती न था । परन्तु सिविल लाइन के है। आर्यसमाज, डी० ए० वी० स्कूल और मुलतानहिस्से में जो पत्थर आया वह काफ़ी कीमती था। तब सेवा-समिति के स्वयंसेवक चौधरी श्यामलाल वकील की तेरह हज़ार रुपया पानी जमा करने के प्रबन्ध पर खर्च अध्यक्षता में यहाँ पीड़ितों की सेवा कर रहे हैं । हुश्रा, पाँच हज़ार सफ़ाई तथा मरम्मत पर और साढ़े एक तरफ़ भारी लंगर लगा हुआ है, जहाँ हज़ारों चार हज़ार पुरानी कब्रों को साफ़ करने और ढाँपने पर। लोगों को हर वक्त खाना मिलता है। लोहे के बड़े-बड़े
छावनी का भाग पथरीला ही नहीं, बरन शहर की तवों पर रोटियाँ पक रही हैं और पीड़ित हाथ फैलाये निस्बत ऊँचा भी है। यह उँचाई ही इसके भूचाल से बचे दाल-रोटी ले रहे हैं । यदि किस्मत अच्छी हुई तो एकरहने का कारण बताया जाता है। एक अन्य कारण शहर अाध श्राम और कुछ खुरमानियाँ भी मिल गई । तम्बुओं
और छावनी के बीच बड़ा नाला है। कहते हैं, इसने · में पानी का प्रबन्ध भी सन्तोषजनक है। तीन फुट ऊँचे भूकम्प के झटकों को अपने अन्दर जप्त कर लिया और और दस वर्ग फुट कन्वेस के बैगों में पानी एकत्र किया छावनी बच गई।
जाता है। ज्यों ही कि भूकम्प का समाचार बेतार-के-तार-द्वारा अभी ये लोग त्रस्त हैं, इसलिए अगर इनके खयाल संसार में फैला, त्यों ही भिन्न-भिन्न देशों से पीडितों के प्रति में भी ज़मीन ज़रा-सी हिलती है तो इनका कलेजा मुँह को सहानुभूति के संदेश श्राने लगे। इधर सम्राट जार्ज ने आने लगता है । इस जगह मालूम नहीं कितने अमीरज़ादे संदेश भेजा, उधर नैपाल के महाराज ने, एक तरफ़ रोटी के लिए मोहताज हैं । कुछ एक ने मलवा खोदकर जापान से संदेश आया तो दूसरी तरफ़ अमरीका और एक-श्राध चारपाई निकाल ली है। वे उस पर बैठे आस्ट्रेलिया से। कई स्थानों से रुपया भी पहुँचा। आकाश की ओर एकटक देखते रहते हैं। न जाने किस
लेकिन डाक्टरों, नो, खाने-पीने की सामग्री तथा सोच में डूबे होते हैं । श्रम से पले-पोसे खूबसूरत चौड़े दवाइयों की मदद सबसे पहले संभवतः नथियागली से चेहरेवाले इनके बाल-बच्चे आपको अपनी तरफ देखने पहुँची, क्योंकि इसी छावनी का वायरलेस के द्वारा सबसे पर मजबूर करते हैं। परन्तु श्राप उधर देख नहीं सकते । पहले भूकम्प का पता मिला था। नथियागली के अतिरिक्त घायल हुए लोगों के लिए कोयटा में चार जगह लाहौर और कोहाट से कई एक हवाई जहाज़ इन्हीं चीज़ों प्रबन्ध किया गया है। रेस-कोर्स में वे बीमार जाते हैं जिनको से भरे हुए कोयटा पहुँचे। लाहौर से फल, दूध, घी मामूली चोटें आई हैं। दूसरा केन्द्र इंडियन मिलिटरो मक्खन, कपड़ा, दवाई आदि की कई गाड़ियाँ डाक्टरों अस्पताल है । इसके साथ ही कैन्टोन्मेंट जेनरल हास्पिटल नसों और वालंटियरों के सहित कोयटा को गई। साढ़े तीन भी है। इसमें कई हज़ार बीमारों के रखने का प्रबन्ध है। हज़ार से ज्यादा मनुष्य तो जख्मी ही पड़े थे। दूसरों को बीमार इतने ज्यादा हैं कि उनके लिए संतोषजनक प्रबन्ध छोड़ उनकी सेवा ही बड़ा काम था। वहाँ जो डाक्टर गये होना असंभव-प्राय है। अस्पताल का दृश्य मनुष्य को उन्होंने दिन-रात, चौबीस घंटे, मरीज़ों के पट्टियाँ बाँधीं। वहाँ खड़ा नहीं होने देता। रोगियों की चीख-पुकार ___अब हम कोयटा में उस जगह चलते हैं जहाँ रिलीफ़ कलेजा फाड़ देती है। उनकी अवस्था देखकर पत्थर का काम हो रहा है। घुड़दौड़ के मैदान में आज- दिल भी पिघल जाता है। एक रोगी पीड़ा के मारे चिल्ला कल तम्बू ही तम्बू दिखाई देते हैं। जिस स्थान पर रहा है और अपना तकिया सिर के नीचे से खींच कर किसी समय फैशन और सौन्दर्य का प्रदर्शन हुआ शरीर के साथ दबा रहा है ताकि किसी तरह दर्द कम हो करता था, अब वहाँ फटे हुए कपड़े पहने लोग पड़े जाय । कोई चीखें मारता हुश्रा अपनी चारपाई की पाये जाते हैं । यहाँ जिस किसी मनुष्य से सामना होता सलाखों को ही पकड़कर दबाता है। एक अन्य अपने है वही अपने मरनेवाले रिश्तेदारों की संख्या बतलाता आत्मीयों की याद में फूट-फूटकर रोता है।
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