________________
१- क्या योरप में युद्ध छिड़ेगा ?
नी ने अपनी नई प्रगति से योरप की राजनीति का मानो कायापलट कर दिया है । यही नहीं, उससे योरप के राजनीतिज्ञों के डम्बर का भण्डाफोड़ भी हो गया है और यह प्रकट हो गया है कि कौन कितने पानी में है। अभी तक यह समझा जाता था कि विजयी राष्ट्र ऐक्य के सूत्र में श्राबद्ध हैं और वे एक मत से वहाँ की राजनैतिक अवस्था के सँभालने का भार अपने ऊपर लिये हुए हैं । परन्तु जर्मनी के हिटलर ने इसका रहस्य खोल दिया है और यह स्पष्ट रूप से प्रकट हो गया है कि पहले चाहे जो कुछ रहा हो, पर अब वह बात नहीं रही । और तो और, मध्य-योरप तथा बाल्कन श्रादि के जिन राज्यों की फ्रांस ने स्वाधीनता प्राप्त करने में पूरी सहायता की और जिनका वह भरोसा करता था कि मौके पर वे साथ देंगे उनमें से पोलेंड का झुकाव प्रकट रूप से जर्मनी की ओर है। और अब तो यह जान पड़ता है कि ज़ेचोस्लावेकिया और जुगोस्लाविया भी जर्मनी से घनिष्ठता बढ़ाना चाहते हैं ।
ज
संसार को पति
की सन्धि भी हो गई । इस सन्धि का जर्मनी ने विरोध ही नहीं किया है, किन्तु इसके जवाब में उसने अपने नौबल के सम्बन्ध में ग्रेट ब्रिटेन से समझौता भी कर लिया है । एक इसी बात से प्रकट हो जाता है कि योरप की राजनीति का क्या रुख है । अन्यथा जिस जर्मनी ने वर्सेलीज़ - सन्धि-पत्र के विरुद्ध आचरण किया है उसके साथ क्या न्याय की दृष्टि से समझौता हो सकता था ? परन्तु इस समय योरप में यही हो रहा है ।
और ऐसी अवस्था में अर्थात् जर्मनी को सन्धि-पत्र के विरुद्ध सैनिक तैयारी करते देखकर फ्रांस को अपना बल बढ़ाना श्रावश्यक हो गया है। इधर सोवियत रूस अचानक महत्त्व या गया था। उसने योरप के कतिपय छोटे छोटे राष्ट्रों से राजनैतिक सम्बन्ध स्थापित कर लिया था। इस बात से तथा इस बात से भी कि उसका जर्मनी से विरोध है, फ्रांस ने झट अपना मैत्री का हाथ उसकी ओर बढ़ा दिया । फलतः वह राष्ट्र संघ का सदस्य हो गया और फ्रांस से उसकी परस्पर सहायता करने
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
.. फ्रांस, ब्रिटेन तथा इटली - ये तीन ही योरप के महायुद्ध-विजयी राष्ट्र हैं। यद्यपि अभी तक एकमत होकर ही ये तीनों महाशक्तियाँ सब कार्य करती आई हैं और आज भी पूर्ववत् ही सम्मिलितरूप से राष्ट्र संघ का कार्य संचालित करती हैं, तथापि ये कुछ खास मामलों में अपने अपने दृष्टिकोण से ही काम करने लग गई हैं। फ्रांस ने रूस से और ब्रिटेन ने जर्मनी से अलग अलग समझौता कर ही लिया है। इटली भी आस्ट्रिया और हंगेरी का अपना एक गुट बनाये हुए है । श्रास्ट्रिया के ही कारण उसका जर्मनी से समझौता नहीं हो सका। अभी हाल में एक और नई बात हुई है। ब्रिटेन और फ्रांस ने इटली और एबीसीनियी के मामले में हस्तक्षेप किया है। इटली जापान की तरह अबीसीनिया को मंचूकों नहीं बना पाया और मुसोलिनी को अपने ोंठ काटकर चुप रह जाना पड़ा । उपर्युक्त अवस्था से यह बात भले प्रकार स्पष्ट जाती है कि योरप के छोटे-बड़े सभी राष्ट्र अपनी रक्षा तथा उन्नति की व्यवस्था तो कदाचित् निर्वाध रूप से कर तो सकते हैं, पर ऐसा कोई काम नहीं कर सकते या नहीं करने पायेंगे जिससे युद्ध छिड़ जाने की सम्भावना होगी ।
इस प्रकार योरप की राजनैतिक अवस्था विषमता को प्राप्त है ।
परन्तु योरप की इस अवस्था का रूप अब भयंकर
www.umaragyanbhandar.com