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संख्या १ ]
कर्सियाङ्ग में मारवाड़ी सार्वजनिक पुस्तकालय
कर्सियाङ्ग (दार्जिलिङ्ग) में पिछले चार वर्षों से कतिपय मारवाड़ी नवयुवकों ने एक सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित कर रक्खा । इतने ही समय में इस संस्था ने कर्सियाङ्ग के बाहर के लोगों का भी ध्यान आकर्षित किया है और श्री घनश्यामदास बिड़ला जैसे लोग इसका निरीक्षण भी कर आये हैं । कर्सियाङ्ग जैसे स्थान में उत्साह के साथ हिन्दी द्वारा ज्ञान प्रचार का जो कार्य हो रहा है वह प्रशंसनीय है और प्रवासी हिन्दी भाषियों के लिए अनुकरणीय है । आशा है, यह संस्था इसी प्रकार उन्नति करती जायगी ।
सम्पादकीय नोट
देव पुरस्कार
के सम्बन्ध में हमें निम्न सूचना प्राप्त
उपर्युक्त पुरस्कार हुई है
सर्वसाधारणको सूचित किया जाता है कि इस वर्ष सवाई महेन्द्र महाराजा श्रीमान् वीरसिंहदेव ओरछा - नरेश द्वारा प्रदत्त दो सहस्र रुपये का देव पुरस्कार खड़ी बोली के पद्य-ग्रन्थों पर दिया जायगा ।
प्रतियोगिता में सम्मिलित होनेवाले ग्रन्थों की ग्यारह ग्यारह प्रतियाँ ३१ जुलाई सन् १९३५ तक पुरस्कार समिति में जानी चाहिए |
देव- पुरस्कार के लिए जीवित कवियों के दो वर्ष के भीतर प्रकाशित ग्रन्थ पर ही विचार किया जायगा । पर वह ग्रन्थ ग्रन्थ कहलाने योग्य अवश्य होना चाहिए | विषय और छन्द का चुनाव कवि की इच्छा पर निर्भर है । विशेष जानने के लिए पत्र-व्यवहार कीजिए । गौरीशङ्कर द्विवेदी 'शङ्कर' प्रधान मंत्री, श्री वीरेन्द्रकेशव-साहित्य-परिषद् टीकमगढ़, ओरछा राज्य
महात्मा गांधी और प्रार्थना
ईश- प्रार्थना के सम्बन्ध में महात्मा गांधी 'हरिजनसेवक' में लिखते हैं
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जब कोई मनुष्य गिर पड़ता है तब उठने के लिए वह ईश्वर से प्रार्थना करता है । तामिल भाषा में एक कहावत है कि वह निराधारों का आधार है । कोयटा का यह भयंकर महानाश मनुष्य की बुद्धि को चक्कर 'डाल देता है । यह हमारे पुनर्निर्माण के तमाम प्रयत्नों पर पानी फेर देता है । इस महानाश के विषय में सम्पूर्ण सत्य शायद कभी मालूम न हो सकेगा। जो बेचारे इस दुर्घटना में मर गये उन्हें फिर से जीवन-दान नहीं दिया जा सकता ।
पर मनुष्य को तो अपना प्रयत्न जारी रखना ही चाहिए । जो बच गये हैं उन्हें सहायता अवश्य मिलनी चाहिए। ऐसा पुनर्निर्माण जहाँ तक संभव है, किया जायगा । पर यह सब और इसी प्रकार का और भी काम ईश्वर-प्रार्थना का स्थान नहीं ले सकता ।
मगर प्रार्थना ही क्यों की जाय ? अगर कोई ईश्वर है तो क्या उसे इस भयंकर दुर्घटना का पता न होगा ! उसे क्या इस बात की आवश्यकता है कि पहले उसकी प्रार्थना की जाय तब कहीं वह अपना कर्त्तव्य पालन करे ।
नहीं, ऐसी बात नहीं है, ईश्वर को याद दिलाने की कोई ज़रूरत नहीं । वह तो घट-घट का वासी है। बिना उसकी आज्ञा के एक पत्ता भी नहीं हिल सकता । हमारी प्रार्थना तो सिर्फ़ इसलिए है कि हम अपने अन्तर का शोधन करें । प्रार्थना के द्वारा तो हम खुद अपने को यह याद दिलाते हैं कि उसके अवलम्ब के बिना हम सब कितने समर्थ और असहाय हैं । हमारा कोई भी प्रयत्न बिना ईश्वर-प्रार्थना के विफल ही है। वह प्रयत्न तब तक किसी प्रकार पूर्ण नहीं कहा जा सकता जब तक उसमें प्रार्थना का पुट न हो । मनुष्य के जिस प्रयत्न के पीछे ईश्वर का आशीर्वाद नहीं वह कितना ही अच्छा क्यों न हो, बेकार हो जाता है । यह एक मानी हुई बात है । प्रार्थना से हम विनम्र बनते हैं । वह हमें ग्रात्म-शुद्धि की ओर ले जाती है, अंतर निरीक्षण करने के लिए प्रेरणा देती है ।
जो बात मैंने बिहार के भूकम्प के समय कही थी उसे मैं आज भी कहूँगा। हर एक भौतिक विपत्ति के पीछे
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