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कोटा का प्रलय
संख्या १]
लड़कियाँ भी थीं। जब भूचाल याया तब युधिष्ठिर पेशाब करने के लिए उठकर बाहर गया था । वह बच गया, बाकी दब गये । उसने ३ बजे ही मलवा खोदना शुरू कर दिया । अध्यापिका और उसकी छोटी लड़की जीवित निकल आई। वह अपनी माता और बहन को आवाज़ें दे रहा था कि अन्दर से किसी के साँस लेने और चूँ-चूँ करने की आवाज़ आई । युधिष्ठिर ने अपनी कोशिश जारी रक्खी। लेकिन जब बहुत मुश्किल से मलवा हटा पाया तब अन्दर पालतू कुतिया निकली जो ज़ंजीर से बँधी थी। इसे देखकर युधिष्ठिरं खुश हुआ, लेकिन साथ ही उसके आँसू बहने लगे । वह थक चुका था ।
इसी प्रकार जब पहला झटका ग्राया तब बटाला की एक महिला अपने पति के साथ मकान से बाहर निकल आई | पति ने कहा कि भूचाल अब खत्म हो गया है, चलो अन्दर लौट चलें । अभी पति ने एक ही पाँव अंदर रक्खा था कि सारा मकान गिर पड़ा और वह कमर तक ईंटों और मिट्टी में गड़ गया । " उन्होंने पुकारा, पानी लायो । मैं नल की तरफ़ दौड़ी। परन्तु वह भी मिट्टी के नीचे दबा पड़ा था । बड़ी मुश्किल से मिट्टी हटा कर जब मैं अपना दुपट्टा भिगोकर उनके पास ले गई तब वे तड़फ तड़फ कर स्वर्ग सिधार चुके थे। मैं पापिनी वहीं खड़ी रह गई ।”
एक स्त्री ने बताया - " मैं अपने भाई के पास कोयटा गई हुई थी। मैं तो बच गई, पर भाई अपने परिवार सहित वहीं मर गया ।" एक छोटी बच्ची उसके साथ थी । इसे छाती से लगाकर वह फूट पड़ी। मालूम हुआ कि स्त्री बालविधवा है और इसे सिर्फ़ भाई का ही सहारा था ।
संकटग्रस्त हिन्दुनों में आत्माभिमान का भी भाव बहुत ज्यादा देखने में आया है । हिन्दू सभा के स्वयंसेवक एक महिला के पास गये और उसे कमीज़, धोती तथा दुपट्टा पेश किया, क्योंकि उसके सारे कपड़े फटे हुए थे। कपड़ों को देखकर वह ज़ोर-ज़ोर रोने लगी । अन्त में बोली"मैं अपना सारा घराना भूचाल की भेंट कर आई हूँ, मुझे इन कपड़ों की ज़रूरत नहीं। मैं आपसे एक बात चाहती हूँ । आप प्रार्थना करें कि ईश्वर मुझे भी सँभाल
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ले ।" बहुत मजबूर करने पर भी उस देवी ने उन कपड़ों को हाथ न लगाया ।
कोटा से आनेवाली कई गर्भवतियों ने रेलगाड़ी में बच्चे जने हैं । लेकिन भूचाल की आवाज़ सुनकर भय के मारे कई एक के गर्भ गिर गये । एक अँगरेज़ मैनेजर की स्त्री के ३१ तारीख को सुबह साढ़े तीन बजे लड़की पैदा हुई ।
एक बात जो अभी तक समझ में नहीं आई वह पशुपक्षियों के सम्बन्ध में है। क्या जानवरों को भूचाल के ने की खबर पहले ही हो जाती है ? एक सज्जन बताते हैं- "यह बात हमने अपनी आँखों देखी है कि भूचाल के ाने से एक रात पहले कोयटा से सभी पक्षी उड़ गये थे । इसी कारण भूकम्प में कोई मरा हुआ परिंदा नहीं मिला । उस रात कुत्ते भी ज़ोर-ज़ोर से भूकते रहे थे । ऐसे जैसे रा रहे हों ।" बहुत से लोगों के लिए यह एक समस्या ही बनी रहेगी ।
अक्सर लोगों को यह कहते सुना गया है कि कोयटा में जो आदमी बचे हैं उनमें अधिकतर ग़रीब और बुड्ढे हैं । इसके अतिरिक्त यह भी कि अँगरेज़ों की अपेक्षा हिन्दुस्तानियों की ग्रार्थिक हानि अधिक हुई है । कहा नहीं जा सकता कि इन बातों में सचाई कहाँ तक है, लेकिन दो-एक बातें साफ़ हैं । अमीर बड़े-बड़े मकानों में रहते थे, ग़रीब झोंपड़ियों में; यह हर जगह देखने में श्राता है । बुड्ढों के विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता, सिवा इसके कि प्रकृति को उनसे विशेष प्रेम हो । बाक़ी रही अँगरेज़ों का कम नुकसान होने की बात । इसका कारण यह है कि कोटा में अधिकतर अँगरेज़ सैर करने के लिए जाते हैं, लेकिन हिन्दुस्तानी तो वहाँ बरसों से घर बनाकर रहते थे ।
यह खेद की बात है कि ऐसे मौकों पर भी मनुष्य का अन्धकारमय पार्श्व देखने में आता है । १० जून को लाहौर में कोयटा से एक ट्रेन आई। इसमें पीड़ित अधिक थे, ज़ख्मी कम । कई मुसलमानों ने हिन्दू अबलाओं और बच्चों को बर्गलाने और साथ ले जाने की कोशिश की । लेकिन हिन्दू स्वयंसेवक
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