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संख्या १]
कोयटा में प्रलय
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का पहरा लगा दिया गया । पहाड़ियों और शहर के गिर्द उन्हें प्रयत्न करना पड़ा। उन्होंने अनुभव किया कि पाँच-पाँच मील तक हथियारबंद फ़ौज खड़ी कर दी अंतिम घड़ी आ पहुँची है। ऊँची आवाज़ से कहना शुरू गई।"
_ किया कि परमात्मा, मेरा जीवन समाप्त कर दो या मुझे ___ कानपुर के दयानन्द ऐंग्लों वैदिक कालेज के प्रिंसि- बेहोश कर दो । ये चार घंटे उन्होंने बगैर फ़िक्र और मानपल लाला दीवानचन्द के बड़े भाई लाला काहनचन्द सिक दुःख के गुज़ारे। उनकी शक्ति खत्म होने को थी भूचाल से दो दिन पहले अपने निज के एक काम से कोयटा कि उन्होंने भजन पढ़ना और प्रार्थना करना शुरू कर गये थे। उन्होंने जो बातें बतलाई हैं वे भी वर्णनीय हैं। दिया । ऐन ज़रूरत के वक्त तीन-चार आदमी वहाँ श्रा वहाँ से बचकर लौटने को लाला जी “यमद्वार से वापसी" पहुँचे जिन्होंने आवाज़ सुनी। उन्होंने पूछा-कौन बोलता कहते हैं । २८ मई को वे कोयटा पहुँचे । डाक-बंगले के है ? लाला जी ने कहा -मैं दबा पड़ा हूँ। उन लोगों ने सामने एक कोठी में ठहरे । प्राऊट-हौस में एक मिस्त्री - कुछ कोशिश करके लाला जी के शरीर के ऊपर के हिस्से
और एक नाई भी थे । डाक-बँगले में गुजरात के रईस राय से मलवा अलग किया। निकल आने पर कहा, केदारनाथ ठहरे हुए थे। राय केदारनाथ के सम्मान में अब मुझे छोड़ दो। इस मकान के अमुक भाग में दो ३० मई की शाम को कुछ मित्रों ने एक पार्टी दी जो ११ मनुष्य और दबे पड़े हैं। उनको देखो। उनमें से एक बजे तक जारी रही। जब बाकी सजन अपने-अपने घर जीवित निकला दूसरा मर चुका था। लाला जी ने उन को चले गये तब राय केदारनाथ और लाला काहनचंद मजदूरों से कहा-"डाक-बँगले के फ़लाँ कमरे में राय दर्मियानी सड़क पर एक घंटा के करीब टहलते रहे, परस्पर केदारनाथ को देखो । अगर उनको जिन्दा निकाल सकोगे बातें होती रहीं। १२ बजे म्युनिसिपलटी की बत्तियाँ बुझा तो तुम्हें एक हज़ार रुपया दिया जायगा। अगर सिर्फ दी गई, इसलिए दोनों अलग होकर सोने के लिए चले उनकी खबर ला दोगे तो दस रुपये दूंगा। मेरे कोट में गये । लाला काहनचंद को नींद नहीं पाई। उन्होंने लेटे- जो दबा पड़ा है, करीब सौ रुपया होगा, वह तुम ले लेटे पढ़ना शुरू कर दिया। दो-ढाई घंटे तक वे पढ़ते रहे। जानो।" कुछ मिनटों के बाद ये मज़दूर राय केदारनाथ यह असाधारण बात थी। इतने में उन्होंने बहुत ज़ोर की के नौकर के साथ आये और बताया कि वे मर चुके
आवाज़ सुनी। देखा कि मकान की छत दीवारों से अलग हैं । लाला जी दूसरे दिन कोयटा से निकल आये। एक होकर उनके ऊपर पा रही है। न समय मिला, न साहस ताँगे में बैठ गये। उसने डेढ़ रुपया माँगा । यह रुपया हुअा कि कुछ करें । एक क्षण में छत उनके वे उधार लेकर ही दे सकते थे। परन्तु यह अब सम्भव न ऊपर थी। कुछ झटके और पाये। इससे शरीर तथा था। उनकी सारी मिलकियत एक कुरता और एक धोती मलवे के दर्मियान जो जगह खाली थी वह भी भर थी। धोती का आधा हिस्सा उन्होंने एक अन्य मनुष्य को गई । सिर के नीचे एक ईट चुभ रही थी। उसे हिलाना जो ज़रूरतमंद था, दे दिया। चाहते थे, लेकिन कुछ न कर सकते थे। कभी खयाल इस अवसर पर कुछ लोगों को एक अन्य विचित्रश्राता कि कोशिश करें और मलवे के नीचे से निकलें, सी तकलीफ़ भी हुई। वह डी० ए० वी० स्कूल के एक कमी खयाल होता कि इस व्यर्थ प्रयत्न में अपनी शक्ति शिक्षक की ज़बानी सुनिएक्यों खत्म करें । मलवे में इत्तिफ़ाक़ से ज़रा-सा सूराख "रात सख्त अँधेरी। तीन साढ़े तीन का समय । रह गया जो उनकी आँखों में प्रकाश की कुछ किरणे एकाएक ज़ोर-ज़ोर से चूं-धूं की आवाज़ कानों में पड़ी।
और नाक में कुछ हवा लाता रहा । चार घंटे इसी प्रकार सन् १६३१ के भूचाल के वक्त भी ऐसी ही आवाज़ आई गुज़रे । इसके बाद फेफड़ों और गर्दन पर ज्यादा बोझ थी।मेरे साथ चारपाई पर तीन बरस का लड़का साया पड़ा होने से उनका दम घुटने लगा और साँस लेने के लिए था। उसे छाती से लगा लिया। बाँया हाथ उसके सिर
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