________________
७
शाहजादे जो ज़मीन पर पैर धरना गवारा न करते थे और वे बच्चे जो मा की गोद और मकान की चहारदीवारी का स्वर्ग समझे बैठे थे, श्राज छतों और दीवारों के नीचे दबे पड़े हैं । या अगर मलवे से निकाले गये हैं तो उनकी लाशें सड़कों और गली-कूचों में दूसरे का मुँह ताक रही हैं । मा का बच्चे का पता नहीं, पत्नी का पति का नहीं है | बालक बिलबिला रहे हैं, पुरुष सिर धुनते हैं और स्त्रियाँ रुदन कर रही हैं। कोई घर ऐसा नहीं जिसे सदमा न पहुँचा हो। कोई भाग्यवान् घराना ही होगा जो बच गया हो । लाखों के मालिक रात के २ बजे तक सुख की नींद सो रहे । परन्तु २ बजे के बाद वे या तो परलोक सिधार गये या शरीर पर पहने हुए कपड़ों के सिवा सब कुछ खो बैठे। उम्र भर की कमाई तो एक तरफ, बीबी, बच्चे और आत्मीय भी खो बैठे। एक ओर मर्द “दौड़ो ! बचाओ !” की आवाज़ें लगा रहे थे, दूसरी ओर औरतें "कोई पहुँचो ! निकाले !" की दुहाई दे रही थीं । जिस महल्ले में मैं रहता था वहाँ चार नवयुवकों ने अपनी जानों को संकट में डालकर कई जीवित स्त्री-पुरुषों और
सरस्वती
ज़मीन के अंदर से निकाला। इधर रात अँधेरी, उधर बिजली के तार टूट जाने से रोशनी नहीं। सर्दी से ठिठुर रहे लोगों ने लकड़ियाँ जला जलाकर रिश्तेदारों की तलाश की। किन्तु बे-बस । खोदने का सामान न था । अंत में हारकर सवेरे तक रोते-चिल्लाते रहे। पहले झटके के बाद उसी रात तीन बार और भूचाल आया । परन्तु किस्सा तो पहले ने ही ख़त्म कर दिया था, इसलिए बाद में आनेवाले झटकों की कोई हस्ती न थी । लोग डर रहे थे कि फिर भूचाल न जाय । करते भी तो क्या करते ! हर महल्ले में पाँच-पाँच, सात-सात आदमी ही बचे। वे अपने रिश्तेदारों को बचाते या दूसरों को ।
" जब दिन निकला तब एजन्ट गवर्नर जनरल ने कमांडर-इन-चीफ़ से फ़ौज की सहायता माँगी क्योंकि areer- छावनी में भूचाल से बहुत कम हानि हुई थी । इसके फलस्वरूप ब्रूस-रोड आदि पर गोरखों और गोरों के फ़ौजी दस्ते पहुँच गये । यह संख्या भी अपर्याप्त थी। फिर भी फ़ौजियों ने कई दबे हुए लोगों की जानें
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
[ भाग ३६
बचाई। सिविल अस्पताल गिर चुका था, इसलिए जख्मी एंबुलेंस कारों में बिठलाकर ब्रिटिश मिलिटरी अस्पताल पहुँचाये गये । रात होने से पहले-पहल बचे हुए लोग मेकमॉहन पार्क, जनाना मिशन हास्पिटल, जिमखाना आदि में आश्रय लेने के लिए जा पहुँचे ।
" रात होते ही शहर के गिर्द फ़ौज का पहरा लगा दिया गया । बाहर तोपें खड़ी कर दी गई । हवाई जहाज़ भी उड़ते रहे। इस रात भी पाँच भटके श्राये । इनमें से अंतिम जो ५ बजे श्राया, पहले दिन के झटके से किसी तरह कम न था ।
" कहते हैं, इस रात (३१ मई) पेशीन के मौज़ा से चालीस-पचास पठान शहर को लूटने के लिए रात के साढ़े ग्यारह बजे कोटा आये। लेकिन गोरखों ने इन पर गोलियाँ चलाई, जिससे पन्द्रह पठान मारे गये बानी भाग गये ।
"पहली जून की सुबह को लोग फिर लाशें निकालने में संलग्न हो गये । उस दिन लोगों को कुछ बलोची भी मिल गये । वे दस रुपये फ़ी लाश की उजरत पर लाश निकालते थे । लेकिन वहाँ दस रुपये क्या, दस पाइयाँ भी किसी की जेब में न थीं। उनकी संपत्ति शरीर पर लिपटे हुए कपड़ों के सिवा कुछ न थी । तो भी लोगों ने इधरउधर से रुपये माँगकर उनकी भेंट किये ।
"इधर लाशों की मुसीबत थी, उधर मछली - बाज़ार, बाज़ार सराफ़ा, कंधारी बाज़ार और ब्रूस-रोड पर गिरी हुई दूकानों से प्रज्वलित हो उठी। पहले दो बाज़ारों
तो इसलिए कि वहाँ पर मुसलिम होटलों के होने के कारण दिन-रात के चौबीसों घंटे आग जलती रहती थी । अंतिम दो में इसलिए कि वहाँ बिजली के तार परस्पर टकरा गये। चोरों और बदमाशों ने इस अवसर पर बहुत हाथ-पाँव मारे । परन्तु सबके सब गिरिफ़्तार कर लिये गये । दिन के क़रीब ११ बजे गुरुदत्तसिंह-रोड पर दो मुसलमान पठानों ने एक स्त्री के बाज़ काटकर उसके सोने के कड़े उतार लिये। लोगों के शोर मचाने पर गोरखा सिपाही जमा हो गये और उन्होंने दोनों को पकड़ लिया । " इसके बाद शहर के अंदर और बाहर गोरखा- फ़ौज
www.umaragyanbhandar.com