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सरस्वती
[भाग ३६
रेलगाड़ियाँ रेसकोर्स-ग्राउंड से छूटती थीं और स्टेशन पर मुसाफिरों को फर्जी टिकट मुफ्त दिये जाते थे। गाड़ी के चलने से पहले हर एक को पानी, चाय और बच्चों के लिए दूध-बिस्कुट दिया जाता था, और एक दफ़ा फिर डाक्टरी मुआयना होता था । प्लेटफार्म पर भी डिस्पेंसरी खोल दी गई थी। अधिक घायल व्यक्ति स्ट्रेचर पर रेडक्राससोसायटी के सेवकों या रेलवे वालंटियरों के कन्धों पर लाये जाते थे। एम्बुलेंस गाड़ियों के बहुत देर बाद पहुँचने के कारण मुसाफिरों को दो दिन तक काफी कष्ट पहुँचा, क्योंकि
[भूकम्प की जननी कोयटा की पहाड़ी-इसकी विभिन्न मामूली घायल और अधिक घायल दोनों प्रकार ।
चोटियों से अब भी धुंवा और गंधक निकल रहा है ।। के मनुष्य फल की गाड़ियों में भरकर भेजे जाते रहे। यह रेलवालों की ग़फ़लत का परिणाम पर कड़ा पहरा था, क्योंकि अत्यन्त दुर्गन्धि के कारण था। बाद को एम्बुलेंसकारों के आ जाने पर अधिक कुछ समय के लिए खुदाई बन्द कर दी गई थी। इधर घायल व्यक्ति विशेष हिफाजत से भेजे जाने लगे। बबर पठान लुटेरों का सदा भय बना रहता है। हमारे इस प्रकार पाँच-छः दिन में कोई १० या १२ हज़ार- कोयटा पहुँचने के दूसरे दिन हमें पता चला कि भूकम्प पीड़ित कोयटे से बाहर लाहार, मुल्तान, हैदरा- पिछले रोज़ ४० पठानों की मंडली लूट-मार के लिए बाद इत्यादि जगहों को भेजे गये।
शहर में आ धमकी थी, जिसमें से २० तो गोली का जिस दिन हम कोयटा से वापस चले, उस दिन शिकार बनाये गये और २० पकड़े गये। बाद में २-३ फौज का शहर, छावनी और आस-पास के दुर्गा पठान शहर के चौराहों पर लटका दिये गये।
इसमें शक नहीं कि ऐसे असाधारण समय में फौज के बिना कोई सरकारी या गैर-सरकारी संस्था इस फुर्ती, सफ़ाई और ईमानदारी के साथ भूकम्प पीड़ितों की सहायता नहीं कर सकती थी। परन्तु तो भी अन्य संस्थाओं को सेवार्थ न आने देने की नीति उचित नहीं मानी जायगी। जब पब्लिक संस्थायें फौजी शासन के अधीन होकर कार्य करने को तैयार थीं तब इनकी माँग को ठुकराकर सरकार ने बुद्धिमानी का काम नहीं किया है। वापसी पर मेरी सिंध के कांग्रेसी नेता श्रीयुत जयरामदास
दौलतराम से भेंट हुई। उन्होंने भी यही कहा कि [मुस्तङ्ग का एक बाज़ार]
कोयटा के फौजी शासक हमको सेवा करने की
Surat