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सरस्वती
[भाग ३६
दोनों छोटी बहनों के लिए वर ढूँढ़ने वे सरयूपार गये। लड़का और तीन लड़कियाँ थीं। ब्याह हो जाने पर लोगों ने भुलावा देकर एक घर के दो लड़कों का तिलक लड़कियाँ अपने घर चली गई, और कुछ समय बाद चढ़वा दिया । घर आने पर पता लगा कि वरवाला घर चिनगी का एकलौता बेटा मर गया। पुत्रस्नेह बहुत किन्हीं कारणों से नीच समझा जाता है। उन्होंने तिलक बड़ी चीज़ होती है, किन्तु इन मज़दूर जातियों के लिए बेटा लौटा देने की बात कही, जिस पर वरवाले तरह तरह की तो बुढ़ापे का बीमा ही होता है। खुशी-नाराज़ी जैसे भी हो, धमकी देने लगे। पुजारी के भाई-बन्धु भी उन्हें समझाने उसे अपने बूढ़े मा-बाप का बोझा उठाना ही पड़ता है। लगे। किन्तु पुजारी कब अपनी बहनों को कुजात के घर किन्तु बूढ़े चिनगी के लिए पुजारी भारी अवलम्ब थे। वे ब्याहने लगे ! बहुत ज़ोर देने पर वे फूट फूटकर रोने उसके पुत्रशोक और भूख को मिटाने का बहुत ध्यान रखते लगे, और बोले—मैं दोनों बहनों को गले से बाँधकर पानी थे। इसके लिए पुजारी की मा कभी कभी बोल भी उठती में डूब मरूँगा, पर उस घर में शादी न करूँगा। थीं। कुछ दिन बीमार रहकर एक दिन माघ की बदली में आखिर पुजारी ने शादी नहीं की।
चिनगी चल बसे। लोगों को बहुत अचरज हुआ जब और जगहों की भाँति पुजारी के गाँव में भी ग़रीब पुजारी ने कहा, चिनगी भगत की दाह-क्रिया गंगातट पर व्यक्ति बिना ब्याहे ही बूढ़े हो जाते थे। गाँव का एक (जो वहाँ से प्रायः तीस मील पर था) होगी । शर्म, संकोच ब्राह्मण तीस वर्ष से ऊपर का हो गया था, और अब या दबाव से ही चिनगी के भाई-बन्धु उस बदली में लाश तक उसका ब्याह नहीं हुआ था, न होने की आशा ही ले जाने के लिए तैयार हुए। पुजारी ने साथ जाकर थी। दूसरे गाँव में उसकी रिश्तेदारी में एक तरुण गंगातट पर चिनगी का दाह-कर्म कराया, और क्रिया-कर्म विधवा थी। दोनों का देवर-भाभी का नाता था। नित्य भी हुअा । लोग कहते थे, पुजारी पर चिनगी का पहले की अवाजाही से दोनों में प्रेम ही नहीं हो गया, बल्कि जन्म का क़र्ज़ था; और वे अच्छी तरह उऋण हुए। छिपकर रखने की अपेक्षा वह अपनी भावज को घर पुजारी का एक बलिष्ठ बैल एक दिन लड़ते लड़ते पर लाकर रखने लगा। पहले तो मालूम हुआ, वह उनके अपने बनवाये कुएँ में गिर पड़ा। बहुत प्रयत्न से मेहमानी में आई है, किन्तु पीछे बात प्रकट हो गई। जीता तो निकल आया; किन्तु उसका पिछला एक पैर पुजारी को यह बात असह्य मालूम हुई और वे बलपूर्वक बेकार हो गया। पुजारी के लिए अपने लँगड़े बैल से उस विधवा को गाँव से निकालने के लिए गये। बड़ी कोई काम लेना असम्भव था। कम खेतवाले कुछ लोगों मुश्किल से लोग उन्हें मनाकर लाये। वे कहते थे-गाँव ने कई बार कहा, बैल हमें बेच दीजिए। पुजारी का में यह बहुत ही बुरा उदाहरण होगा, जिसे देखकर यह कहना था, यह बैल न बेचा जा सकता है और न काम रोग औरों में भी फैलेगा।
के लिए दिया जा सकता है। तन्दुरुस्त और मज़बूत होते इस घटना से पुजारी की सामाजिक अनुदारता सिद्ध . वक्त उसने हमें कमाकर खिलाया है। क्या काम न कर होगी, किन्तु साथ ही यह भी था कि यदि पुजारी को सकने पर बूढ़े मा-बाप बेच दिये जाते हैं ? दुनिया के बारे में और अधिक सुनने-जानने का मौका थोड़ी-सी महाजनी के अलावा पुजारी का प्रधान पेशा मिलता तो वे अपने विचारों को जल्दी बदल भी देते, था खेती। खेती के सम्बन्ध में किसान कट्टर सनातनी होते क्योंकि समझ में आ जाने पर वे किसी बात का दुराग्रह हैं। पुजारी का गाँव बाज़ार, स्टेशन, शहर, सड़क सभी नहीं करते थे।
से बहुत दूर था, इसलिए खेती-सम्बन्धी नई बातों का . पुजारी की तीन हर की खेती थी, जिनमें एक हरवाहा उनके गाँव में पहुँचना मुश्किल था । तो भी पुजारी लोगों
था चिनगी चमार । चिनगी किसी समय कलकत्ता में के मज़ाक करते रहने पर भी घर के काम के लिए बालू, किसी साहब का साईस भी रह चुका था। उसके एक मूली, गाजर और गोभी भी बोने लगे थे। एक बार वे
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