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संख्या १]
संगीतमय मारवाड़
हे स्वप्न ! तुमने मेरे साथ बड़ा विश्वासघात किया, उस पर ज़ीन कस दी और किसकी आज्ञा से तुम परदेश यदि मेरा वश चलता तो तुझे मैं क़त्ल करा देती । जा रहे हो ? हे मेरे हृदय के जीव ! तुम कमाने के लिए इस पर स्वप्न कहता है
पूरब की ओर मत जाओ। म्हे छाँ सुपना सरव सुलखना जी,
बड़े बीरे घुड़ला गोरी ! कस दिया जी, कोई बीछुड्या न देवा ये जी ये मिलाय,
हाँ ए गोरी ! साथीड़ा कस दीनी जीन, म्हें छाँ सुपना ढ़लती रैन का जी।
__बाबा जी रे हुकमा चाल्या चाकरी जी। सुन्दरी ! मुझे क़त्ल क्यों कराती हो ? मैं तो बिछुड़े पति ने कहा-प्रिये ! बड़े भाई ने मेरा घोड़ा कस. हुए प्रेमियों का मिलन कराता हूँ।
दिया है, और साथियों ने उस पर ज़ीन रख दी है। पिता
जी की आज्ञा से मैं कमाने के लिए जा रहा हूँ। एक और गीत का कुछ अंश
ऐक रुपैयो भँवर जी मैं बाजी, बाय चल्या भँवरजी पीपली जी,
हाँ जी ढोला बन ज्याऊँ पीली पीली म्झेर, हाँ जी ढोला हो गई घेर घुमेर,
भीड़ पड़ जद भँवर जी बरत ल्यो जी, बैठन की रुत चाल्या चाकरी जी,
श्रो जी म्हारी सेजा रा सिणगार, ओ जी म्हारी सास सपूती रा पूत,
पिया जी ! प्यारी न साग ले चलो जी। मतना सिधारो पूरब की चाकरी जी ।
स्त्री ने कहा- हे नाथ ! मैं तुम्हारे लिए रुपया बन स्त्री कहती है-हे प्रियतम ! तुमने जो पीपल का जाऊँगी। मैं तुम्हारे लिए पीली पोली मोहर बन जाऊँगी। वृक्ष लगाया था वह अब खूब घनी छायावाला हो हे प्राणधन ! जब आवश्यकता हो उस समय उसे काम गया है। जब उसकी छाया में बैठने की ऋतु आई तब में लाना । हे मेरी सेज के शृङ्गार ! प्रियतम ! अपनी तुम परदेश को चले । हे मेरी सुपुत्रवती सास के पुत्र! प्रेमिका को साथ लेते चलो। तुम कमाने के लिए पूरब मत पधारो।
पति परदेश को चला गया । स्त्री पति को पत्र ब्याय चल्या छा भँवरजी गोरड़ी जी.
लिखती है ... हाँ, जी ढोला हो गई जोध जवान,
कदे न ल्याया भँवर जी ! सीरणी जी, बिलसन की रुत चाल्या चाकरी जी,
हाँ जी ढोला कदे न करी मनुवार, श्रो जी म्हारी लाल नणद राश्रो वीर,
कदे न पूछी मनड़े री बारता जी, मतना सिधारो पूरब की चाकरी जी।
श्रो जी म्हारी लाल नणद रा ओ बीर, तुमने जिस गोरी से विवाह किया था वह यौवनमद थाँ बिन गोरी न पलक न श्रावड़ जी।। से मतवाली हो गई है। जब विलास की ऋतु आई तब हे स्वामी ! तुम न कभी मिठाई लाये और न मुझे - तुम कमाने चले । हे मेरी प्यारी ननद के भाई ! कमाने प्यार से खिलाया। न कभी तुमने मन की बात ही पूछी। के लिए पूरब की ओर मत जायो ।
हे मेरी प्यारी ननद के भाई ! तुम्हारे बिना तुम्हारी गोरी कुँण थारा घुड़ला भँवर जी कस दिया जी, को एक क्षण भी चैन नहीं पड़ती। हाँ, जी ढोला कुँण थारी कस दिनी जीन,
इस गीत में विरहिणी पत्नी की बड़ी मार्मिक पुकार है । कुण्यारे हुकमा चाल्या चाकरीजी,
इस गीत में उसके अंतस्तल का प्रेम छलका पड़ता है। अो जी म्हार हिवड़ा रा जिवड़ा,
उपर्युक गीतों के द्वारा प्रत्येक साहित्यसेवी इस तह मतना सिधारो पूरब की चाकरी जी ।
तक पहुँच सकता है कि इन गीतों की उपयोगिता तथा हे नाथ ! किसने तुम्हारा घोड़ा कस दिया, किसने व्यापक महत्त्व कितना अधिक है।
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