Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 3
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे नुभवेभ्योपि खण्डमुण्डादिव्यक्ती एकपरामर्शप्रत्ययस्योत्पत्तिः स्यात् । अथ प्रत्यासत्तिविशेषात्खण्डमुण्डाद्यनुभवेभ्य एवास्योत्पत्तिर्नान्यतः । ननु प्रत्यासत्तिविशेषः कोन्योऽन्यत्र समानाकारानुभवात्, एकप्रत्यवमर्श हेतुत्वेनाभिमतानां निर्विकल्पकबुद्धीनामप्रसिद्ध श्च । अतोऽयुक्तमेतत्
"एकप्रत्यवमर्शस्य हेतुत्वाद्धीरभेदिनी ।। एकधीहेतुभावेन व्यक्तीनामप्यभिन्नता ।।"
[प्रमाणवा० ११११० ] इति । ततोऽबाधबोधाधिरूढत्वात्सिद्ध सदृशपरिणामरूपं वस्तुभूतं सामान्यम् । तस्याऽनभ्युपगमे
एक
प्रत्यय का हेतुपना सिद्ध नहीं हो सकता है, अन्यथा सफेद अश्व प्रादि व्यक्तियों के अनुभवों से भी खण्डो मुण्डी आदि गो व्यक्ति में एक परामर्शी ज्ञान की उत्पत्ति होने लग जायगी।
बौद्ध- ऐसी बात नहीं होगी, क्योंकि प्रत्यासत्ति विशेषता के कारण खण्डी मुण्डी आदि गो के अनुभवों से ही गो व्यक्तियों में एक परामर्शी प्रतिभास की उत्पत्ति होती है, अन्य सफेद अश्वादि के अनुभवों से नहीं, मतलब गो व्यक्ति के अनुभवों की गो व्यक्ति के साथ ही प्रत्यासत्ति विशेष [निकटता] है न कि कर्कादि के अनुभवों के साथ है, अतः गो व्यक्तियों के अनुभवों से मात्र गो व्यक्ति में एक परामर्शी ज्ञान होता है ?
जैन-अच्छा तो यह बताइये कि प्रत्यासत्ति विशेष किसे कहते हैं ? समान आकार रूप से प्रतीति होना ही प्रत्यासत्ति विशेष कहलाती है, न कि अन्य कुछ । यह भी बात है कि निर्विकल्प ज्ञान स्वरूप अनुभव एक परामर्शी प्रतिभास का हेतु है ऐसा आप कहते हैं किन्तु निर्विकल्प ज्ञान की ही सिद्धि नहीं होती है, इस ज्ञान का पहले ही [ निर्विकल्प प्रत्यक्षवाद: नामा प्रथम भाग के प्रकरण में ] खण्डन कर आये हैं । अतः निम्नलिखित श्लोकार्थ प्रयुक्त है कि-एक परामर्शी प्रतिभास का हेतु निर्विकल्प बुद्धि है, निर्विकल्प ज्ञानों में एकपना होने के कारण ही गो आदि व्यक्तियों में अभिन्नता या समानता की झलक-अनुगत प्रत्यय [ गो है, गो है] होता है ।।१।। इस प्रकार बौद्ध का सामान्य विषयक मंतव्य बाधित होता है इसलिये सदृश परिणाम स्वरूप सामान्य ही वास्तविक वस्तु है ऐसा स्वीकार करना चाहिये, क्योंकि यह सामान्य का स्वरूप अबाधित ज्ञान द्वारा सिद्ध होता है । यदि सामान्य को वस्तुभूत नहीं माना जाय तो आपके प्रमाण वात्तिक के वक्तव्य में विरोध पाता है। इसी को बताते हैं -क्षणिक
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