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नियमसार
( अनुष्टुभ् ) पञ्चास्तिकायषडद्रव्यामप्ततत्त्वनधार्थकाः ।
प्रोक्ताः सूत्रकृता पूर्व प्रत्याख्यानादिसस्क्रियाः ।।७।। प्रलमलमतिविस्तरेण । स्वस्ति साक्षादस्म विथरणाय ।
अथ सूत्रावतार :
मिऊरण जिरणं वोरं, प्रतवरणाणदसणसहावं । वोच्छामि रिणयमसारं, केवलिसुदकेवलोभरिणदं ॥१॥
नत्वा जिन वारं अनन्तवरज्ञानदर्शनस्वभावम् । वक्ष्यामि नियमसार केवलिश्चत केलिभणितम् ॥१॥
जो जिन अनंत ज्ञान प्रौ दर्शन स्वभाव युत । करके नमन उन बीर का मैं भक्ति भाव युत ।।
जा सकती । तवरलो में जिसको कहा है। उस नियमसार को कहूंगा जो कि महा है ।।१।।
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(७) श्लोकार्य-सूत्रकार ने इस ग्रन्थ में प्रथम गांच अस्तिकाय, छह द्रव्य, सात तत्व और नव पदार्थ का तथा ( अनंतर ) प्रत्याख्यान आदि सक्रियाओं का वर्णन किया है अर्थात् इस ग्रन्थ में प्रथम हो पांच अस्तिकाय आदि का वर्णन है। अनंतर मुनियों के नियम-रत्नत्रय स्वरूप के अंतर्गत प्रत्याख्यान प्रतिक्रमण ग्रादि क्रियाओं का वर्णन किया गया है । अब श्रीमान् भगवान कुन्दकुन्ददेव के सूत्र का अवतार होता है--
गाथा १ अन्वयार्थ -[ प्रणंतवरज्ञानदर्शनस्वभाव ] अनंतस्वरूप, श्रेष्ठज्ञान और दर्शन स्वभाव वाले [ वीर जिनं नत्वा ] श्री वीर जिनेन्द्र को नमस्कार करके [ फेलिसकेलिमणितं ] 'केवली भगवान् तथा श्रुतकेवली भगवान् के द्वारा कथित ऐसे [ नियमसारं वक्ष्यामि ] नियमसार को मैं कहूगा ।
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