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प्रस्तावना
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मैं एवं श्री हरकचन्दजी चौधरी भूतपूर्व समाज कल्याण अधिकारी राजस्थान अगस्त ८२ में डिग्गी के शास्त्र भण्डार की खोज में गये थे ग्रन्थों की सूची बनाते समय प्राप्त हुई थी। पद्मपुराण की पाण्डुलिपि हुई है। हो सकता है राजस्थान प्रथवा शास्त्र भण्डारों में पाण्डुलिपि मिल जाये। मैं श्री हरफ चन्द है जिन्होंने दो दिन तक ठहर कर ग्रन्थों की सूची बनाने
तब मुझे मह पाण्डलिपि अभी तक यही एक मात्र देहली सादि के पोर भी चौधरी का भी भाभारी
में
सहयोग दिया था।
पद्मपुराण का सार---
चौबीस तीर्थंकरों के मंगलमय स्तवन से पद्मपुराण प्रारम्भ होता है । इसके पश्चात् जिनवाणी के स्वरूप का कथन एवं राम नाम के महात्म्य का वर्णन किया गया है । कवि ने अपने पूर्ववर्ती प्राचार्य रविषेण के स्मरण के पश्चात् राजगृही नगरी की सुन्दरता, कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ के यशोगान के साथ ही त्रिशला माता द्वारा सोलह स्वप्न, भगवान महावीर का जन्म, तप, कैवल्य एवं समवसरण का करन मिलता है। महाराजा श्रेणिक रघुवंश की कथा जानने की इच्छा प्रकट करते हैं । भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि खिरती है और गौतम गणधर द्वारा जिनवाणी के अनुसार रघुवंश की कथा का वर्णन किया जाता है ।
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गौतम गणधर रामकथा कहने के पूर्व भोगभूमि एवं चौदह कुलकरों के उल्लेख के पश्चात् प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पिता महाराजा नाभिराय एवं महारानी मरुदेवी के गर्भ से ऋषभदेव का जन्म, वेषों द्वारा जन्मोत्सव का प्रायोजन, ऋषभदेव का बाल्यकाल, शारीरिक सुन्दरता, विवाह व सन्तानोत्पत्ति राज्य प्राप्ति व उनके द्वारा लोन वरा (क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) की स्थापना का वर्णन करते हैं। दीर्घकाल तक राज्य सुख भोगने के पश्चात् ऋषभदेव तपस्वी बनकर कैपत्य प्राप्त करते हैं। धर्मोपदेश देते हैं और पन्त में निर्वाण प्राप्त करते हैं। ऋषभदेव के १०१ पुत्र एवं २ पुत्रिया होती है। भरत का विग्विजय के पश्चात् अपने छोटे भाई बाहुबली से युद्ध होता है । युद्ध में यद्यपि बाहुबली की विजय होती है लेकिन उन्हें वैराग्य हो जाता है । भरत सम्राट बनते है | भरत द्वारा ब्राह्मण वर्ग को स्थापना की जाती है और उन्हें "सबसे उत्तम शंभरण भने" के रूप में स्वीकार किया जाता है।
सम्राट भरत पर्याप्त समय तक राज्य सुख भोगते हैं और अन्त में भावित जन को राज्य भार सौंपकर स्वयं वैराग्य धारण कर लेते हैं। इस कथानक में विद्याधर वंश का वर्णन एवं सत्पयोष की कथा कहीं गयी है। तृतीय कथानक में अजितनाथ तीर्थंकर के वर्णन के पश्चात् सगर की उत्पत्ति, उसके साठ हजार पुत्रों द्वारा कैलाश पर जाकर गंगा को खोदना, धरणेन्द्र द्वारा भीम एवं भागीरथ को छोड़कर सभी पुत्रों को पनी कार से भस्म करना, पिता द्वारा पुत्रों की मृत्यु पर दुःख प्रकट करने के पश्चात् भागीरथ को राज्य सौंपकर स्वयं जिन दीक्षा ले लेने