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प्रस्तावना
देव वविध दान, अर्थ पाम धर्महि करें।
ते पाबै निरवान, जस प्रगटै तिहुँ लोक में ॥११/१५३॥ घउपह--धन पाया कछु पुन्य न किया, भपजस पोट अपने सिर लिया।
श्राप साथ न खुवावे और, सदा बहै चिता की ढोर ।।१५४।। जोडि द्रव्य धरती तल दियो, केले काहू ने सोपियो। के वह धन लेवं हर चोर, के खोया जुया की ठौर ।।१५।। के वह सात विसन सो ममा, के रिण दिया तिहां यकी रह्मा । फैइ राजि में लीया दण्ड, विरपन भया जगत में भंड ॥१५७॥
ऐसे लगता है कि कधि के समय में रात्रि भोजन त्याग का नियम कुश्च शिथिल हो गया था तथा पानी को छानकर पीने की प्रवृत्ति भी कुछ कम हो रही थी। इसलिए इन दोनों नियमों को इक्षता से पालन करने पर जोर दिया है तथा नियमों को नहीं पालन करने वाले की स्ल ब भत्सना की गयी है।
भोजन रयण तजे ति बात, ते कहोए मानुस को जात ! जे नर रमण भोजन खांहि, राख्यस सम जाहिये ताहि ।
दोहा खे नर निसी भोजन कर, कंद मूल फल खाइ ।
ते चिह'गति भ्रमते फिर, मोक्षपंथ तिहा नाहि ।।१०५१।। इसी तरह बिना छना पानी सेवन करने का निषेध किया है
भण्डाण्यां जो पीवे नीर, कर स्नान मंजन सरीर । कंदमूलादिक सब फल खाय, मत संयम पाल्यो नहीं जाय ।।१४।।
प्रेस जे सेवे मिथ्यात्व, ते नर मर करि नरके जात ॥
लेकिन भूखे को भोजन देने एवं प्यामे को पानी पिलाने में प्रपार पुण्य बतलाया है तथा सरल चित्त रख कर दूरारे के दुःख को दूर करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
मुखा भोजन प्यासा नीर, सरल चित्त जाने पर पीर ।
पुनि संयोग लह गति देव, नरपति लगपति उत्तम कुल भेव ।।१६।।११ पराधीनता
कवि ने पराधीनसा को बहुत बुरा बतलाया है।
पराधीन कछु बोल न सके, जिंहा भेजे विहां पल नहीं टिक ।
जैसी प्राशा सोई होय, ताको घरज सके नहीं कोई ॥४५८७।। सुभाषित एवं सूक्तियां
पुराण में विविध कथानक प्राय हैं इन कथानकों के प्रसंग में कहीं कहीं कवि ने बहुत सुन्दर सुभाषित एवं सूक्तियां कही है जो सदैव मनन चिन्तन एवं जीवन में