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पठनीय है। ऐसा लगता है वह युग भी युद्धों का युग था मोर बिना हार जीत के कोई समस्या नहीं सुलझती थी। लेकिन भरत बाहूबली युद्ध दोनों भाईयों के मध्य होता है उसमें सेना तो खडी खड़ी तमाशा देखती रहती है व्ययं के खून बहाने के यह अच्छी बाल थी। इन युद्धों में भेजा, बरी, धनुष, तलवार, चक्र, गदा जैसे हथियारों के अतिरिक्त धग्निबाण, मेघवारा, घुप्राबागा, अंधकार वाण, प्रकाश बाल जैसे हथियारों का प्रयोग होता है। युद्ध में नायपासनी विद्या, शक्तिवाल जैसी विद्याओं का भी खुलकर प्रयोग किया जाता था। रावण के घमेले के पास ग्यारह सौ विद्याएं थी और बहुरूपणी विद्या उसने बाद में प्राप्त की थी। कभी-कभी बड़े भयंकर युद्ध होते थे जिनमें जन हर्मन बहुत हुआ करती थी। ऐसे ही एक युद्ध का वर्णन देखिये
प्रस्तावना
परवत मुंड मुजा का भया, पड़ो लोग उस जाईल दिया । सोन नदी वह सिहा लोथ, हाथी घोड़े रथ सूर बहोत ||३७३१ ।। जैसे मगरमच्छ जल तिरे से लोथ रक्त में फिरे। जैतारण का दोउ सेन, तिनका कहि न सक कोइ जैन || ३७३२॥
रावण को नलकूबड़ से युद्ध करने में विमान से गोलियां, गोले बरसाना पड़ा था। चार योजन ( कोश) तक गोलों की मार होती थी। कवि समाचन्ध के समय मैं तोप और गोलों से युद्ध होने लगा था। इसलिये उसने इस युद्ध में भी उनका वर्णन कर दिया जो तरकालीन युद्ध कौशल का परिचायक है। युद्ध में विमानों का प्रयोग होता था । विद्याधर तो विमान से ही श्राते जाते थे। रावण का पुष्पक विमान का नाम तो सर्वत्र प्रसिद्ध है ।
नगरों का वर्णन
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पद्मपुराण में अनेक नगरों का उल्लेख आया है। इनमें से कुछ पौराणिक है तथा कुछ ऐतिहासिक वैसे सभी राजाओं के अपने-अपने नगर में जहाँ से ये ग्रपने देश का शासन करते थे । सर्वप्रथम कवि ने राजगृही नगरी का वर्णन किया है जहां सात मन्जिले महल थे जिनमें मिति विश्रों की भरमार थी । बोहे-चौड़े बाजार एवं चौपड़ थी। नगर के चारों ओर से घोड़ी एवं गहरी खाई थी यही नहीं नगर का व्यापार भी खूब तगड़ा था | महां सराफी, वस्त्र व्यवसाय, लेन-देन प्रादि होता रहता था ।
ऊचै मन्दिर हैं सत खिने सबसे सरल राय के बने
बसें सघन दीस नहीं गंग, लिखे चित्र जिम भले सुरंग || उज्जल वर धवल दूर किये, छत्री कलस कनक के दिये ।।१/३७॥
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