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सुनि सभाप एवं उनका पयपुराण
कमल उखारि लिपा मुख माहि, भानू मेरे मन्दिर आहिं । सीजे देल्या पूरण चन्द्र, सुपने देख मया प्रानन्द ॥७१/१८१।। इसी तरह लवकुश होने के पूर्व सीता ने भी स्वप्न में निम्न प्रकार देखा था
रात पाछली बटिका प्यार, सुपिना निध पाई तिह पार । दोई केहरी गर्जत देखे, सायर अल निर्मल पेषे ।।४४६५॥ देव विमाण प्रायता माणि, जाणु सुख में से प्रारण ।
भए प्रभात जागरण के बेर, गावे गुणीजन मधुरी और ॥४ ||
उसी तरह राम की माता अपराजिता एवं लक्ष्मण की माता सुमित्रा ने भी स्वप्न देखे थे जिनका फल राम और लक्ष्मण जैसे महापुरुष पुत्र के रूप में उत्पन्न होना था। शकुन एवं शकुन फल
स्मन स्वयं व्यक्ति का पाते हैं जबकि शकून अन्यत्र होते हैं जो शुभ शकुन एवं अपशकुम दोनों सरह के होते हैं। जैसे ही प्रयोध्या में राम और लक्ष्मण का जन्म होता है रावण के पहां अपशकुप होते हैं
रावण के घर उलकापात, बिजली परी कापिर वह जास्त । रात विषस शैवं मंजार, कूकर रोवे बारम्बार ॥१७११।। मेंमल चारि सुपने माझि, बोलै काग होइ जब साँझ ।
अल्लू बोलै दिन तिहाँ पणे, ऐसी चिता मन रावण तणे ॥१७१२।।
इसी सरह धुस के अन्तिम दिन जब रावण प्रायुधशाला में शस्त्र लेने पहुँचता है तो उसे फिर कुछ अपशकून होते हैं जिससे उसको बड़ी चिन्ता होती है।
रावण प्रावधसाला घल्या, तिहां सुगम खोट सहूं मिल्या 1 इंट सों छात्र पड्यो भूमि, टूटी धुरी पाया ग्य भूमि ॥३६२०॥ माग होइ मिकल्या मांजार, स्वाम कान झाया तिन बार। खोट सुगन राषण को भये, मंदोदरी सोचें निज हिवे ।। ३६२१।।
राम द्वारा गर्भवती सीता को वन में एकाकी छोड़ने से पूर्व उसकी भी दाहिनी मोख फड़कने लगी थी तब उसने निम्न प्रकार विचार भी किया था
दयण पोस्ति फरक सिया, पश्चाताप मन में कर लिया।
करम उदै कन बेहड़ फिरी, वन माहि ते रावरए अपहरी ॥४५०३।। युद्ध वर्णन
पद्मपुराण में युद्धों का वर्णन विस्तृत रूप से हुमा है। यह युद्ध राम रावरण के मध्य होने हारमा सो लोक चर्चित है लेकिन भरत वाहबली युद्ध, माली द्वारा लका पर पाक्रमण, वैश्रवन राजा द्वारा युद्ध, इन्द्र और राजा के मध्य युद्ध वर्णन भी