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एवं उनका वारि
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विद्याधर- मनुष्य जाति में ये विद्याधर विशेष जाति के होते हैं जो ग्राकाशचारी होते हैं। विमानों के द्वारा मे शाकाश में चलते है। अंजना, पत्रनंजय, हनुमान सभी विद्याधर जाति के मनुष्य थे। इनकी विद्यायें स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। विद्याओं के धारक होने के कारण इन्हें विद्याधर कहा जाता है। भरत को राजसभा में विद्यावर नरेश भी थे। मंजना को पुत्र के साथ विद्याधर नगर ले माया गया था ।
पंजनी मति विवाश बैठाई, वसंतमात्रा संग लई चढाइ | विद्याधर ले निजपुर चल्ला, सुगन मुहूरत साध्या मला । बैठा विधारण चले प्राकास देख्या रबि बालक माका ।।१३२६ ।। भूमिगोचरी-भूमिगोचरो का मर्थ मनुष्यों से है जो केवल भूमि पर ही चलते है । राम, सीता, लक्ष्मण, जनक, दशरथ मादि सभी भूमिगोचरी कहलाते थे । राबशा अपनी शक्ति के सामने मूमिगोवरियों की शक्ति को कुछ नहीं
समझता था 4
म्लेच्छ - म्लेच्छ खण्ड में रहने वालों को ग्लेच्ख कहा जाता था । रावण का प्रदेश से खण्ड में बिना जाता था । ये म्लेच्छ बड़ी दुष्ट प्रकृति के होते थे और सत्पुरुषों को संग किया करते थे । रावण यद्यपि राक्षस वंशी या लेकिन उसकी गिनती भी म्लेच्छों में भाती भी ये भतिशय शक्तिशाली होते थे । राजा जनक ने दशरथ से लेच्छों से छुटकारा पाने के लिए ही राम लक्ष्मण को मामन्त्रित किया था।
म्लेच्छ मोहि घेरा है श्राय, थाणा मेरा दिया उठाय । पीड़ा परजा कु दे हैं घनी, देबल अहि गड विहां हणी साधा कू देहै जपसर्ग, जिसकूं तिस मारेख ड्ङ्ग ।। १८०० ॥ विवाह वर्णन
पुराण युग में पति पत्नि के रूप में रहने के लिए विवाह बन्धन आवश्यक माना जाता था । पद्मपुराण में विवाह के दो रूप सामने आते है एक स्वयंबर द्वारा, दूसरा सप्तपदी द्वारा बारात लेकर कभ्या के पिता के घर जाकर दोनों प्रकार के विवाह जन समाज द्वारा मान्य थे । ममरप्रभ विवाह के लिए बारात लेकर गये थे। नगर के पास बारात आने पर मगवानी की गयी थी (४८ /६७) बारात ने जनवासा किया था। विवाह में कपड़े, गहने, हाथी एवं घोडे दिये गये थे। रात को जीपनचार देकर सम्मान किया था।
श्रीमाला का स्वयंवर रचा गया था । कन्या में पंप पसन्द के वर के गले में माला पहिनायी थी। रावला ने शुभ मुहर्त में मन्दोदरी के साथ विवाह किया था। (७४ / २६८) सीता ने स्वयंवर में राम के गले में माला डाली थी ।