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मुनि सभाचंद एवं जनका पद्मपुराण
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उनु के कारण माये लंक, मन में कछुपन प्राणी संफ ||३०६८।। ब्योरा सू समझामो बात, मिट संदेह सुणि विरतांत ।
लक्ष्मण तणी कही कुसलात, छाप एह पाई किरण भांति 11३०६६॥
सीता को राम वन में छड़ा देते हैं और अपने भाग्य भरोसे जीने को मजबूर करते है फिर भी सीता अपने ही भाग्य को कोसती है और राम को कभी दोष नहीं देती।
असा कर्म उदय हना प्राय, वे सुख खासि भेजी इस लाय । के में बच्छ बिछोहा गाय, के मैं बाल बिछोह माय । के सरवर ने बिछोहा हंस, के परबोनीका राख्या अंस ॥४५६७।।
राम सीता की अग्नि परीक्षा लेते हैं और उसमें वह खरी उतरती है। धास्तव में विश्व में यही एकमात्र उदाहरण है
पंचनाम हिरदै संभाल, जिन बीसौं सुमरे तिकाल । सरद भूषण को करी नमस्कार, मन प्रश्न काय सत रहे हमार ।। ४६२५॥ अगनि माझ ते जो ऊबरू झूठ कहैं तो त्रि। परिजल।
पंच नाम पढि चिता में पड़ी, सीतल भई प्रगान तिह घड़ी ।।४६२६।। ४. रावण
रावण प्रति नारायणा है । वह बाल्य अवस्था से ही शूरवीर एवं युधिय है। भकर्ण एवं विभीषण उसके ना भ्राता है तथा चन्द्रनखा उसकी बहिन है। जब उसे माल म पड़ता है कि पहिले उसके पिता लंका के राजा थे जो उनसे छीन ली गधी है तो माता को अपना पौरुष दिखलाता है और फिर विधाएं सिद्ध करने बैट जाता है और एक साथ ग्यारहसे विद्याएं प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करता है।
सानन मारहस विद्या लई, जिनके गुरुग का पार न कहीं ।२३४/७५ विधाएं सिद्ध करने के पश्चात् वह सहज ही लंका पर विजय प्राप्त कर लेता है। उसके दस सिर एवं बीस मुजाएं हैं। वह महान् बलवान है जिसे देखते ही बड़ेबड़े योवाओं के प्राण सूख जाते हैं। लेकिन वह जिनेन्द्र का भक्त है । जिन पूजा में उसका पूरा विश्वास है । युद्ध के समय भी वह पूजा करना नहीं छोड़ता।
भी जिन परम प्रसाद, वृद्धि भई परिवार की।
पायो संका राज, राक्षसवंसी जग तिलक ।।४६५।। 'रावरा इन्द्र पर विजय प्राप्त करता है तथा अधंघकी बन कर समस्त पृथ्वी पर राज्य करता है । यह प्रत नियमों का पालन करता है और उन्हीं के नियमों के पालन में उसमें अपार शक्ति उत्पन्न होती है। वह प्रनम्तवीर्ष मुनि के पास निम्न प्रकार व्रत पालन करने का निश्चय लेता है--