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छः व्यक्ति जामुन के बाग में फल खाने गये। वहाँ पहुँचते ही पहला व्यक्ति बोला-देखो अब जामुन बृक्ष आ गया, इसे काट गिराना ही अच्छा है ताकि नीचे बैठे-बैठे अच्छे फल खा सके। ऐसा सुनकर दूसरे व्यक्ति ने कहा, इससे क्या लाभ । केवल बड़ी शाखाओं के काटने से ही काम चल जायेगा। तीसरे ने कहा-यह तो उचित नहीं है। छोटी-छोटी शाखाओं रो भी तो हमारा काम निकल जायेगा। चौथे ने कहा-केवल फल के गुच्छों को ही तोड़ना ही काफी है। पांचवें ने कहा-हमें गुच्छे से क्या प्रयोजन ? सिर्फ फल ही तोड़ कर लेना अच्छा है ? अन्त में छ? मनुष्य ने कहा-ये सब विचार व्यर्थ है, हमें जितनी आवश्यकता है उतने फल तो नीचे गिरे हुए हैं ही। फिर व्यर्थ में इतने फल तोड़ने से क्या लाभ ?
इस दृष्टान्त से लेश्याओं का स्पष्ट रूप समझ में आ जाता है। पहले व्यक्ति के परिणाम कृष्णलेश्या के हैं और क्रमशः छट्ठ व्यक्ति के परिणाम शुक्ललेश्या के हैं। यह दृष्टान्त केवल परिणामों की तरतमता दिखाने के लिए है।
प्रथम तीन लेश्या का क्षेत्र सर्वलोक हैं, तेजो-पद्म-शुक्ल लेश्या का क्षेत्र लोक के असंख्यातवें भाग है। यद्यपि केवली समुद्घात की अपेक्षा शुक्ललेश्या का क्षेत्र सर्व लोक व्यापी है।
लेश्या-वर्ण काजल के समान काला कृष्णलेश्या नीलम के समान नीला नीललेश्या कबूतर के गले समान रंग कापोतलेश्या
लेश्या यंत्र रस नीम से अनंतगुण कटु त्रिकुट से अनंतगुण तीखा पक्के आम से अनंतगुण कसैला
गंध व स्पर्श मृत सर्प की गंध से अनन्तगुण अनिष्ट गंध गाय की जीभ से अनंतगुण कर्कश-तीन अप्रशस्त लेश्या
हिंगुल ( सिन्दुर ) के समान रक्त तेजोलेश्या हल्दी के समान पीला पद्मलेश्या शंख के समान सफेद शुक्ललेश्या
पक्के आम के रस से अनंतगुण खट्टमीठा मधुर से अनंतगुण मिष्ट भिसरी से अनंतगुण मिष्ट
सुरभि कुसुम की गंध से अनंतगुण इष्ट गंध नवनीत (मक्खन) से अनंतगुण सुकुमार तीन प्रशस्त लेश्या
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