Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ अकसाई० अवगदवेदभगो। णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणीसु विहत्तीए तिण्णि भंगा। जो सो सादि० जह० अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टा । विहंग विहत्ती केव० ? जह० एगसमओ, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि । आभिणियोहिय०-सुद०-ओहि० विहत्ती जह० अंतोमुहुत्तं उक्कस्सेण छावष्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । अविहत्ती० जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । मणपजव०विहत्ती० जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० पुचकोडी देसूणा । अविहत्ती० जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
विशेषार्थ-क्रोधादि चारों कषायोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है इसमें दो मत पाये जाते हैं। एक मतके अनुसार क्रोधादि कषाय एक समय रहकर भी मरणादिकके निमित्तसे बदली जा सकती हैं। और दूसरे मतके अनुसार क्रोधादिका जघन्य काल भी अन्तमुहूर्तसे कम नहीं होता है। यहां दूसरी मान्यताका ही ग्रहण किया है। तदनुसार क्रोधादि चारोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है।
ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें मोहनीय विभक्तिके कालकी अपेक्षा तीन विकल्प होते हैं-अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त और सादि-सान्त । उनमें से जो सादि-सान्त विकल्प है उसका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल अर्द्ध पुद्गल परिवर्तन होता है। विभंगज्ञानियोंके मोहनीय विभक्तिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल देशोन तेतीस सागर है। आभिनिबोधिकज्ञानी श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंके मोहनीय विभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ अधिक छियासठ सागर है। तथा मोहनीय अविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। मनः पर्ययज्ञानियोंके मोहनीय विभक्तिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल देशोन पूर्वकोटि है । तथा मोहनीय अविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थ-मत्यज्ञान और श्रुताज्ञान अभव्य जीवोंके अनादि-अनन्त भव्य जीवोंके अनादि-सान्त और जिन्हें एक बार सम्यग्दर्शन हो कर पुनः मिथ्यात्वकी प्राप्ति हुई है उनके सादि-सान्त काल तक पाया जाता है। उनमें से यहां सादि-सान्त मत्यज्ञान और श्रुताज्ञानकी अपेक्षा मोहनीय विभक्तिका काल बताया है। जो सम्यक्त्वी जीव मिथ्यात्वको प्राप्त होकर अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर पुनः सम्यक्त्वको प्राप्त कर लेता है उसके उक्त दोनों अज्ञानोंके साथ मोहनीय विभक्ति अन्तर्मुहूर्त काल तक पाई जाती है। तथा जो सम्यकवी मिथ्यात्वको प्राप्त होकर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन काल तक मि यात्वके साथ परिभ्रमण करके सम्यक्त्वको प्राप्त होता है उसके मोहनीय विभक्ति उक्त दोनों अज्ञानोंके साथ कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन काल तक पाई जाती है। जो उपशम् सम्यग्दृष्टि देव या नारकी जीव उपशम सम्यक्त्वके कालमें एक समय शेष रहने पर सासादन
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