Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 430
________________ गो० - २२ ] मुजगारविहत्तीए परिमाणायुगमौ ४०५ पंचि ०प०-तस-तस पज० - पंचमण० पंचवचि० - वेडव्वि प० - इत्थि० - पुरिस०- चक्खु ०उ०- पम्म० - सुक्क० - साण्णि० वत्तव्वं । पंचिदियतिरिक्खअपजत्तएस अप्पदर० अवद्वि० के० ? असंखेजा । एवं मणुसअप ० - अणुद्दिसादि जाव अवराजिद ० - सव्व विगलिंदियपंचिदिय अपज० - चत्तारिकाय० तसअपज ० वे उव्त्रियामिस्स ० - विहंग०-आभिणि० सुद०ओहि ० - संजदासंजद - ओहिदंस० सम्मादिट्ठि-वेदय० -उवसम० वत्तं । ४४८. मणुस्सेसु भुज० के० ? संखेजा । अप्पदर० अवद्वि० के० १ असंखेजा । मणुसपज० - मणुसिणी० भुज० अप्पदर० अवट्टि० के० ? संखेजा । सव्वट्ठे अप्पदर • अबट्टि ० के० ? संखेजा । एवमवगद ० -मणपञ्ज० संजद० - सामाइयछेदो ० - परिहार • वत्तव्वं । ४४. एइदिए अप्पदर० के० ? असंखेजा । अवद्वि० के० ? अनंता । एवं पांचों वचनयोगी, वैक्रयिककाययोगी, खीवेदी, पुरुषवेदी, चक्षुदर्शनी, पीतलेइयावाले, पद्मलेश्यावाले, शुक्ललेश्यावाले और संज्ञी जीवोंमें कथन करना चाहिये । अर्थात् इन उपर्युक्त मार्गणास्थानों में नारकियोंके समान भुजगार आदि तीनों विभक्तिस्थानवाले जीव पृथकू पृथक् असंख्यात असंख्यात हैं । पंचेन्द्रियतिथंच लब्ध्यपर्याप्तकों में अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसीप्रकार लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंमें, अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवोंमें, तथा सभी प्रकार के विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, पृथिवी आदि चार प्रकार के स्थावर काय, त्रस लब्ध्यपर्याप्तक, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, विभंगज्ञानी, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, संयतासंयत, अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें कहना चाहिये । अर्थात् इन उपर्युक्त मार्गणास्थानोंमें पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तकोंके समान अल्पतर अवस्थित ये दो स्थान होते हैं । तथा प्रत्येक स्थान में असंख्यात जीव होते हैं । § ४४८. सामान्य मनुष्योंमें भुजगार विभक्तिस्थानवाले जीव कितने होते हैं ? संख्यात होते हैं । तथा अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं १ असंख्यात हैं । मनुष्यपर्याप्त और स्त्रीवेदी मनुष्यों में भुजगार, अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । सर्वार्थसिद्धिमें अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसीप्रकार अपगत वेदी, मन:पर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापना संयत और परिहारविशुद्धिसंयतों में अल्पतर और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंकी संख्या कहना चाहिये । ४४. एकेन्द्रियोंमें अल्पतर विभक्तिस्थानषाले जीव कितने हैं ? असंख्यात है । अबस्थित विभक्तिस्थानवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसीप्रकार बादर एकेन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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