Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 473
________________ ४४८ . जयघबलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडीविहची २ जह० एयसमओ उक्क० सगसगुकस्सहिदी। सुक० संखे० भागवड्ढीहाणी-संखे० गुणहाणि ओघभंगो। अवटा० जह• एगसमओ उक्क० तेत्तीस सागरो० सादिरेयाणि । अभव० अवहा० के० १ अणादिअपञ्जः । खइय संखे० भागहाणि-संखे० गुणहाणि ओघभंगो । अवटा जह० अंतोमु० उक्क० तेत्तीस-साग० सादिरेयाणि । वेदग० संखे० भागहाणि० जहण्णुक्क० एगसमओ। अव४ि० जह० अंतोमु०, उक्क० छावहि सागरो० देसूणाणि । सासण अवष्ठा० जह० एगसमओ, उक्क छावलिया० । सण्णि पुरिसभंगो । णवरि संखेजभागहाणि उक्क० बेसमया । असण्णि• एइंदियमंगो। आहारि० संखेजभागवड्ढोहाणी-संखेजगुणहाणि० ओघभंगो। अवष्टि जह० एगसमओ, उक्क० अंगुलस्स असंखे भागो। अणाहारि० कम्मइयभंगो । एवं कालाणुगमो समत्तो। हानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अवस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है। शुक्ललेश्यावाले जीवोंके संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका काल ओघके समान है। तथा . इनके अवस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल साधिक तेतीस सागर है। अभव्य जीवोंके अवस्थानका काल कितना है ? अनादि-अनन्त है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका काल ओघके समान है। तथा अवस्थानका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल साधिक तेंतीस सागर है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंके संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अवस्थितका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम छयासठ सागर है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अवस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल छह आवली है। ____ संज्ञी जीवोंके संख्यातभागवृद्धि आदिका काल जिस प्रकार पुरुषवेदी जीवोंके कहा है उसप्रकार कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके संख्यातभागहानिका उत्कृष्ट काल दो समय है। असंज्ञो जीवों के जिसप्रकार एकेन्द्रियों के संख्यातभागहानि आदिका काल कहा है उसप्रकार जानना चाहिये। ___ आहारकजीवोंके संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका काल ओघके समान है। तथा अवस्थितका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यात भागप्रमाण है। अनाहारक जीवोंके कार्मणकाययोगियोंके समान काल कहना चाहिये। इसप्रकार कालानुयोगद्वार समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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