Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 507
________________ ४८२ जयघपलासहिदे कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ वेदय पंचिंदियतिरिक्ख अपजत्तभंगो। एवमप्पाबहुअं समत्तं । एवं पयडिविहत्ती समत्ता। पंचेन्द्रियतिथंच लब्ध्यपर्याप्तकोंके कहे गये अल्पबहुत्वके समान है। इसप्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। इसप्रकार प्रकृतिविभक्ति समाप्त हुई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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