Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ पढमाए खेत्तभंगो। विदियादि जाव सत्तमि ति संखेजभागवड्ढी० खेत्तभंगो । संखे. मागहाणि-अवट्टि० के० खेत्तं फोसिदं ? लोग० असंखे० भागो एक्क-बे-तिण्णिचत्वारि-पंच-छ चोदसभागा देसूणा।
५२०. तिरिक्खेसु संखेजभागहाणि० के० खे० फो० ? लोग० असंखे० भागो सव्वलोगो वा । सेसप० खत्तभंगो। ओरालि०-णस-तिण्णिले० तिरिक्खमंगो। पंचिंदियतिरिक्खतियम्मि संखेजभागवड्ढी० खेत्तभंगो। संखेजभागहाणि-अवष्टि के० खे० फो० ? लोग० असंखेजदिभागो सव्वलोगो वा। पंचिं० तिरि० अपज. संखञ्जमागहाणि अवहि० के० खे० फो० ? लोग० असंखे० भागो, सव्वलोगो वा । एवं मणुसअपज०-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदिय अपज० -बादरपुढवि०पज्ज०- बादरआउ० पञ्ज०-बादरतेउ०पज्जा -बादरवाउपज्जा-तसअपज्ज० वत्तव्वं । णवरि बादरवाउपज्ज. कालकी अपेक्षा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। पहली पृथिवीमें स्पर्श क्षेत्रके समान है। दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक पृथिवीमें संख्यातभागवृद्धि विभक्तिस्थानवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। तथा उक्तं द्वितीयादि पृथिवियों में संख्यातभागहानि और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे क्रमसे कुछ कम एक, कुछ कम दो, कुछ कम तीन, कुछ कम चार, कुछ कम पांच और कुछ कम छह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है।
६५२०.तियंचोंमें संख्यातमागहानि विभक्तिस्थानवाले जीवोने कितने क्षेत्रको स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। शेष पदोंकी अपेक्षा स्पर्श क्षेत्रके समान है। औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी और कृष्णादि तीन लेश्यावाले जीवोंका स्पर्श तिर्यचोंके स्पर्शके समान है। पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त और योनिमती इन सीन प्रकारके तिर्यंचोंमें संख्यातभागवृद्धिवाले जीवोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। संख्यातभागहानि और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले उक्त तीन प्रकारके तिथंचोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें संख्यातभागहानि और अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसीप्रकार लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लव्ध्यपर्याप्त, बादर पृथिवीकायिकपर्याप्त, बादर जलकायिकपर्याप्त, बादर अग्निकायिकपर्याप्त, बादर वायु कायिकपर्याप्त और त्रसलब्ध्यपर्याप्त जीवोंके संख्यातभागहानि और अवस्थित पदकी अपेक्षा स्पर्श कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने लोकके संख्यातवें भाग और सर्वलोक क्षेत्रका स्पर्श किया है।
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