Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 495
________________ ४७० जयधवलासहिदे कसायपाहुरे [ पयडिविहत्ती २ के० खे० फो० १ लोग० असंखे० भागो, अह चोदस० देसूणा । सेस० खेत्तभंगो। उवसम० सम्मामि० अवष्ट्रि० के० खे० फो० ? लोग० असंखे० भागो अष्ट-चोदस० देसूणा । सासण० अवष्टि० के० खे० फो० १ लोग. असंखे० भागो अह-बारह चोद्दस० देसूणा । मिच्छादिही० मादअण्णाणिभंगो। एवं पोसणाणुगमो समतो। ६५२५. कालाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण संखेजभागवड्ढी-हाणी केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण एगसमओ, उक्क० आवलियाए असंखे० भागो । संखेजगुणहाणी के० कालादो ? जह० एगसमओ, उक्क० संखेजा समया। अवहि० के० ? सम्बद्धा । एवं पंचिंदिय०-पचिं०पज-तस-तसपज०पंचमण-पंचवचि०-कायजोगि०-ओरालि०-पुरिस०- चत्तारिक०- चक्खु० -अचक्खु० सुक्क भवसि०-सण्णि आहारि ति । किया है ? लोकके असंख्यातवेंभाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। यहां शेष पदोंकी अपेक्षा स्पर्श क्षेत्रके समान है। उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंमें अवस्थितविभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है । सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंमें अवस्थित विभक्तिस्थानवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और बारह भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। मिथ्यादृष्टियोंमें स्पर्श मत्यज्ञानियों में कहे गये स्पर्शके समान जानना चाहिये । इसप्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ। ५२५. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघसे नाना जीवोंकी अपेक्षा सहयातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिका काल कितना है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल आवलीके असंख्यातवें भाग है। संख्यातगुणहानिका कितना काल है ? जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल संख्यात समय है । अवस्थित विमक्तिस्थानका काल कितना है ? सर्वकाल है। इसीप्रकार पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त, बस, सपर्याप्त, पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, पुरुषवेदी, क्रोधादि चारों कषायवाले, चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, भव्य, संज्ञी और आहारक जीवोंके संख्यातभागवृद्धि आदिका जघन्य और उत्कृष्टकाल कहना चाहिये । विशेषार्थ-जब नाना जीव एक समय तक संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिको करके दूसरे समयमें अबस्थान भावको प्राप्त हो जाते हैं किन्तु दूसरे समय में अन्य कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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