Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 504
________________ गा० २२] वड्ढिविहत्तीए अप्पावहुगाणुगमो ४७६ ६५३२. भावाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण सबपदाणं सव्वत्थ ओदइओ भावो। ___ एवं भावाणुगमो समत्तो। ६५३३. अप्पाबहुगाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण सव्वत्थोवा संखेज्जगुणहाणिविहत्तिया । संखेज्जभागहाणि असंग्वेज्जगुणा । संखेज्जभागवड्ढी. विसेसाहिया । अवडिद० अणंतगुणा । एवं कायजोगि०-ओरालि०चत्तारिक०-अचक्खु०-भवसिद्धि० आहारि ति । ५३४. आदेसेण णेरइएसु सव्वत्थोवा संखेज्जभागहाणी । संखेज्जभागवड्ढी० विसेसाहिया। अवहि० असंखेज्जगुणा । एवं सव्वणिरय-पंचिंदिय तिरिक्खतिय-देवा भवणादि जाव णव गेवज्ज०-वेउब्विय-इत्थि०-तेउ०-पम्म० वत्तव्यं । ६५३५.तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा संखेज्जभागहाणि०, वड्ढी० विसेसा०, अवहि० अणंतगुणा । एवं णवूस०-असंजद-तिण्णि लेस्सा त्ति । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० ६ ५३२. भावानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सभी पदोंमें सर्वत्र औदयिक भाव है। इसप्रकार भावानुगम समाप्त हुआ। ६५३३. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा संख्यातगुणहानिविभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अवस्थित विभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं । इसीप्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, क्रोधादि चारों कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके संख्यातभागवृद्धि आदि पदोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहना चाहिये। ६५३४. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें संख्यातभागहानिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे संख्यातभागवृद्धिविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । इसीप्रकार सभी नारकी, पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्त और योनिमती तियंच, सामान्य देव, भवनवासियोंसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देव, वैक्रियिककाययोगी, स्त्रीवेदी, पीतलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवोंके संख्यातभागहानि आदि उपर्युक्तं तीन पदोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहना चाहिये ।। ५३५.तियंचोंमें सबसे थोड़े संख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव हैं। इनसे संख्या तभागवृद्धिविभक्तिवाले जीव विशेष अधिक हैं। इनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव अनन्तगुणे हैं। इसीप्रकार नपुंसकवेदी, असंयत और कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले जीवोंके उपयुक्त तीन पदोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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