Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 502
________________ " गा० २२ ] वड्ढिविहत्तीए अंतरागुगमो पंचलेस्सा • वत्तव्वं । पंचितिरि०अपज्ज० संखेज० भागहाणी - अवट्टि० ओघं । एवमणुद्दिसादि जाव अवराइद० सव्वेइंदिय सव्वविगलिंदिय-पंचि० अपज० - पंचकाय०तस अपज० - ओरालिय मिस्स ० - कम्मइय० - मदि-सुद-अण्णाण - विहंग०- परिहार०-संजदासंजद० वेदग०-मिच्छादि ० - असण्णि० - अणाहारि ति । एत्थ अणुद्दिसादि अवराइदंताणं वासु धत्तंतरमिदि केसिं वि पाढो तं जाणिय वत्सव्वं । $ ५३१. मणुस - मणुसपजत्तयाण मोघभंगो। एवं मणुसिणीसु । णवरि संखेअगुणहाfe वासपुत्तरं । मणुस अपजत्ताणं दोन्हं पदाणमंतरं जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो ० असंखे० भागो । सव्वट्ठे संखेजभागहाणी० जह० एगसमओ, उक्क पलिदो ० ( (31-) संखे० भागो । अवट्टि णत्थि अंतरं । वेडव्वियमिस्स० संखेजभागहाणि अवद्विद० जह० एगसंख्यात भागवृद्धि और संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट जो अन्तरकाल बतलाया है वह ओघके समान ही है, अतः ओघमें जिसप्रकार घटित कर आये हैं उसीप्रकार यहां भी घटित कर लेना चाहिये । विशेष बात यह है कि इन मार्गणाओंमें अवस्थित पदके विषय में कुछ भी नहीं कहा है । सो इसका यही अभिप्राय है कि यहां भी ओघ के समान अवस्थित पदका अन्तरकाल नहीं पाया जाता है । पंचेन्द्रियतियंच लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके संख्यात भागहानि और अवस्थित पदका अन्तकाल ओघके समान है । इसीप्रकार अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देव, सभी एकेन्द्रिय, सभी विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, पांचों स्थावर काय, त्रसलब्ध्यपर्याप्त, औदारिक मिश्रकाय योगी, कार्मणकाययोगी, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत, वेदगसम्यग्दृष्टि, मिध्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोंके संख्यात भागहानि और अवस्थित पदोंका अन्तरकाल होता है । यहां पर अनुदिशसे लेकर अपराजित तक के देवोंके संख्यात भागहानिका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है ऐसा पाठ पाया जाता है सो जानकर कथन करना चाहिये । $ ५३१. . मनुष्य और मनुष्यपर्याप्तकोंके संख्यातभागवृद्धि आदिका अन्तरकाल ओघके समान है। इसीप्रकार मनुष्यनियों के संख्यात भागवृद्धि आदिका अन्तरकाल कहना चाहिये। इतनीविशेषता है कि मनुष्य नियोंके संख्यातगुणहानिका अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है । लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंके संख्यातभागहानि और अवस्थित इन दोनोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भाग है । सर्वार्थसिद्धिमें संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्के असंख्यातवें भाग है । तथा अवस्थित पदका अन्तरकाल नहीं है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके संख्यातभागहानि और अवस्थित पदका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल बारह मुहूर्त है । आहारककाययोगी और Jain Education International For Private & Personal Use Only ४७७ www.jainelibrary.org

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