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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिषिहत्ती २ ६५२८. आभिणि० -सुद० - ओहि. संखेजभागहाणी-संखेजगुणहाणी-अवहि. ओघं । एवमोहिंदंस-सम्मादिहि ति वत्तव्वं । मणपज संखेजभागहाणी-संखेजगुणहाणी-अवहि० मणुसपञ्जत्तभंगो। एवं संजद-सामाइयछेदो० । खइए० संखेजभागहाणी-संखेज गुणहाणी. जह० एगसमओ, उक्कसंखेजा समया । अवहि० के० ? सव्वद्धा । उवसम-सम्मामि० अवष्टि० के० ? जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। सासण० अवष्टि० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो। एक अवस्थित पद ही होता है, अतः इसमें अवस्थित पदका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है।
६५२८. मतिज्ञानी श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी जीवोंके संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और अवस्थित पदका काल ओघके समान है। इसीप्रकार अवधिदर्शनी और सम्यग्दृष्टि जीवोंके उक्त तीन पदोंका काल कहना चाहिये। मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि और अवस्थित पदका काल पर्याप्त मनुष्योंके कहे गये उक्त तीन पदोंके कालके समान है। इसीप्रकार संयत, सामायिकसंयत, और छेदोंपस्थापनासंयत जीवोंके उक्त तीन पदोंका काल कहना चाहिये ।
विशेषार्थ-मतिज्ञानीसे लेकर सम्यग्दृष्टि तक ऊपर जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं उनमें संख्यातभागवृद्धिको छोड़कर शेष पदोंका काल ओघके समान इसलिये बन जाता है कि इनका प्रमाण असंख्यात है और इनमें जीव सर्वदा पाये जाते हैं। किन्तु मन:पर्ययज्ञान पर्याप्त मनुष्योंके ही होता है, अतः इसमें सम्भव सब पदोंका काल पर्याप्त मनुष्योंके समान कहा। तथा संयत, सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत ये मार्गणाएँ पर्याप्त और स्त्रीवेदी मनुष्योंके ही होती हैं, अतः इनमें सम्भव सब पदोंका काल भी पर्याप्त मनुष्यों के समान बन जाता है।
क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। तथा अवस्थित पदका काल कितना है ? सर्वदा है। उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यमिथ्यादृष्टि जीवोंके अवस्थित पदका काल कितना है ? जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग है। सासादनसम्यग्दृष्टियोंके अवस्थितपदका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग है। अभव्य जीवोंके अवस्थित पदका काल सर्वदा है।
विशेषार्थ-जब बहुतसे जीव एक साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़ते हैं और दूसरे समयमें कोई भी जीव क्षपकश्रेणीपर नहीं चढ़ते तब क्षायिकसम्यक्त्वमें संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानिका जघन्यकाल एक समय प्राप्त होता है। तथा जब अनेक समय तक निरन्तर नाना जीव क्षपकश्रेणीपर चढ़ते रहते हैं तब संख्यातभागहानि और संख्यात
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