Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 479
________________ traderie कसायपाहुडे [ पयडिविहत्ती २ 1 सगुक्कसहिदी देखणा । अवहि० ओघभंगो । पुरिस० एवं चैव । णवरि संखेजगुणहाणी • णत्थि अंतरं । णवुंस० संखे० भागवड्ढीहाणि ० - अवट्ठा० ओघभंगो । अवगद • संखेजभागहाणी जहण्णुक्क० अंतोमु० । अवट्ठा जहण्णुक्क० एगसमओ । चत्तारिकसाय० संखेजभागहाणि० जहण्णुक्क० अंतोमु० । अवट्ठा० ओघभंगो । सेसप० णत्थि अंतरं । णवरि लोभक० संखेञ्जगुणहाणि० ओघभंगो । १५०३. मदि० - सुद० - विहंग०-संखे० भागहाणि अवद्वा० एइंदियभंगो । एवं मिच्छा० असण्णीणं । आभिणि० सुद० ओहि ० संखेजभागहाणी० जह० अंतोमु०, उक्क० छावट्टि सागरोवमाणि देसूणाणि । अवधि ० संखेजगुणहाणीणं ओघभंगो । एवमोहिदंस० सम्मादि० - वेदय० । वरि वेदए संखे० गुणहाणी णत्थि । अवट्टि० जहण्णुक्क एगसमओ | मर्णपञ० संखञ्जभागहाणि० जह० अंतोमुडुत्तं, उक० पुव्वकोडी देणा । अवठ्ठा जहण्णुक्क० एयसनओ । संखेजगुणहाणी० ओघभंगो | एवं स्त्रीवेदी जीवोंके समान अन्तरकाल कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके संख्यातगुणहानि भी पाई जाती है पर उसका अन्तरकाल नहीं होता है । नपुंसकवेदी जीवोंके संख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवस्थितका अन्तरकाल ओघ के समान है । अपगतवेदी जीवोंके संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । तथा अवस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है । ४५४ O क्रोधादि चारों कषायवाले जीवोंके संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थानका अन्तरकाल ओघ के समान है । तथा शेष दो पदोंका अन्तरकाल नहीं है । इतनी विशेषता है कि लोभकषायी जीवोंके संख्यातगुणहानिका अन्तरकाल ओघके समान है । $ ५०३. मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी और विभंगज्ञानी जीवोंके संख्यातभागहानि और अवस्थानका अन्तरकाल एकेन्द्रियोंके समान है । इसीप्रकार मिध्यादृष्टि और असंझीजीवोंके कहना चाहिये । भतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंके संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम छयासठ सा है । तथा अवस्थित और संख्यातगुणहानिका अन्तरकाल ओघके समान है । इसीप्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके अन्तरकाल कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके संख्यातगुणहानि नहीं होती है । तथा वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके अवस्थितका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है । मन:पर्ययज्ञानी जीवोंके संख्यातभागहानिका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटि है । अवस्थानका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है । तथा संख्यातगुणहानिका अन्तरकाल ओघके समान है । मन:पर्ययज्ञानी जीवोंके समान संयत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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