Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 474
________________ गा०२२ । वड्ढिविहत्तीए अंतराणुगमो ४४६ ६४६८. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेण संखेजभागवड्ढीहाणीणमंतरं केव० ? जह० अंतोमु०, उक्क० अद्धपोग्गलपरियष्टं देसूणं । अवट्टि० जह० एगसमओ, उक्क० वेसमया । संखेज्जगुणहाणि० अंतरं केव० १ जहण्णुक० अंतोमु० । एवभचक्खु० भवसिद्धिः । ६४९८.अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । उनमेंसे ओघकी अपेक्षा संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। अवस्थितका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है। संख्णतगुणहानिका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार अचक्षुदर्शनी और भव्य जीवोंके कहना चाहिये। विशेषार्थ-२६ या २७ प्रकृतियोंकी सत्तावाले किसी एक जीवने उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त किया और अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो गया। पुन: उपशमसम्यक्त्वका काल पूरा हो जानेपर जो मिथ्यात्वमें चला गया उसके संख्यातभागवृद्धिका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त होता है। तथा २४ प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो जीव मिथ्यात्वमें जाकर २८ प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो गया पुनः अति लघु अन्तर्मुहुर्त कालके द्वारा वेदक सम्यग्दृष्टि होकर और अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके पुनः मिथ्यात्वमें जाकर २८ प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो जाता है उसके भी संख्यात भागवृद्धिका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है । जो २० प्रकृतियोंकी सत्तावाला सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके २४ प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो गया। पुन: मिथ्यात्वमें जाकर और सम्यग्दृष्टि होकर जिसने अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना की उसके संख्यात गुणहानिका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त पाया जाता है। जिस जीवने संसारमें रहनेका काल अर्धपुद्गलपरिवर्तन प्रमाण शेष रहनेपर उसके पहले समयमें प्रथमोपशम सम्यक्त्वको ग्रहण करके अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता प्राप्त की। तत्पश्चात् पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण कालके द्वारा जो सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्वकी विसंयोजना करके छब्बीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो गया। पुनः अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण कालमें अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर जिसने पुनः प्रथमोपशम सम्यक्त्वको ग्रहण करके २८ प्रकृतियोंकी सत्ता प्राप्त कर ली, उस जीवके संख्यात भागवृद्धिका उत्कृष्ट अन्तरकाल एक अन्तर्मुहूर्त कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन कालप्रमाण होता है। तथा संख्यातभागहानिका उत्कृष्ट अन्तर काल कहते समय अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण कालके प्रारम्भमें पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके द्वारा सम्यक्त्व और सम्यगमिथ्यात्वकी उद्वेलना करावे, अनन्तर संसारमें रहनेका काल अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करावे । इसप्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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