Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 455
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पयडिविहत्ती २ उवरिमगेवज०-वेउव्विय०-असंजद-पंचलेस्साणं वत्तव्वं । पंचिंतिरि०अपज० उक्क० हाणी कस्स ? अण्णदरस्स अट्ठावीससंतकम्मियस्स सत्तावीससंतकम्मियस्स वा सम्मत्तं सम्मामिच्छतं वा उव्वेल्लंतस्स उक्कस्सिया हाणी । तस्सेव से काले उक्कस्समवहाणं । एवं मणुसअपज०-सव्वएइंदिय-सव्वविगलिंदिय-पंचिंदिय-पंचिंदिय अपज०-पंचकायतसअपज०-मदि-सुदअण्णाण-विहंग-मिच्छादि० - असण्णीणं वत्तव्यं । अणुद्दिसादि जाव सव्वह० उक्क०हाणी कस्स ? अण्णद. अष्ठावीससंतकम्मियस्स अणंताणुवंधिचउक्कविसंजोएंतस्स णिस्संतकाम्मयपढमसमए उक्कस्सिया हाणी। तस्सेव से काले उकस्समवहाणं । एवं परिहार०-संजदासंजद०-वेदय० सम्मादिहीणं वत्तव्यं । ओरालियमिस्स० उक्कास्सिया हाणी कस्स ? अण्णदरस्स वावीससंतकम्मियस्स कदकरणिअस्स पुवाउअंबंधवसेण तिरिक्खेसुव्वण्णसम्मादिहिस्स अपज्जत्तकाले एक्कावीससंतकम्मियपढमसमए वहमाणस्स उक्क० हाणी। तस्सेव से काले उकस्समवहाणं । जीवोंके कहना चाहिये। पंचेन्द्रिय तियंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जिसके पहले अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता है अनन्तर जिसने सम्यक्प्रकृतिकी उद्वेलना की है उसके या जिसके पहले सत्ताईस प्रकृतियोंकी सत्ता है अनन्तर जिसने सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना की है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। तथा इसी उत्कृष्ट हानिवाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तक जीवके उत्कृष्ट हानिके अनन्तर कालमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। इसीप्रकार लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य, सर्व एकेन्द्रिय, सर्व विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक, पांचों स्थावर काय, त्रसलब्ध्यपर्याप्त, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञी जीवोंके कहना चाहिये। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जिसके पहले अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता है अनन्तर जिसने अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजना की है उसके अनन्तानुबन्धी कर्मका अभाव होनेके पहले समयमें उत्कृष्ट हानि होती है। तथा इसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । इसी प्रकार परिहारविशुद्धि संयत, संयतासंयत और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके कहना चाहिये। ___ औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जिसके बाईस प्रकृतियोंकी सत्ता है, अतएव जो कृतकृत्यवेदकसम्यग्दृष्टि है और सम्यग्दर्शन होने के पहले तियंचायुका बन्ध कर लेनेके कारण तिथंच सम्यग्दृष्टि जीवोंमें उत्पन्न हुआ है ऐसे किसी औदारिकमिश्रकाययोगी जीवके अपर्याप्त कालमें बाईस प्रकृतियोंसे इक्कीस प्रकृतियोंकी सत्ताके प्राप्त होने पर पहले समयमें उत्कृष्ट हानि होती है। तथा इसी जीवके तदनन्तर कालमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। इसीप्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और कार्मणकाययोगी www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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