Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 469
________________ १४४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे । पयडिविहत्ती २ मोषभंगो। अवट्ठि० जह० एगसमओ, उक्क० तिण्णि पलिदोवमाणि पुवकोडिपुत्तेणभहियाणि । एवं मणुस्सिणी० । णवरि० संखेज्जभागहाणी० जहण्णुक्क० एगसमओ । देवा०णारगभंगो । भवणादि जाव उररिमगेवज्ज० संखेज्जभागवढिहाणी. णारगमंगो। अवटाणं के० १ जह० एगसमओ, उक्क० सगसगुक्कस्सहिदी । अणुद्दिसादि जाव सम्वह० संखेज्जभागहाणि० जहण्णुक्क० एगसमओ, अवटा० जह० एगसमओ, उक्क० सगहिदी। ६४६२.एइंदिय-वादर०-सुहुम०तेसिं पजत्त-अपज्जत्त-विगलिंदियपज्जत्तापज्जत्तपंचकाय-बादर-बादरपज्जत्तापज्जत्त - सुहुम - सुहुमपज्जत्तापज्जत्त० संखेज्जभागहाणीए वृद्धि और संख्यातगुणहानि इन तीनोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल ओघके समान है। तथा अवस्थितका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटि पृथक्त्वसे अधिक तीन पक्ष्य है। इसीप्रकार स्त्रीवेदी मनुष्योंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि लीवेदी मनुष्योंके संख्यातभाग हानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। विशेषार्थ-सामान्य और पर्याप्त मनुष्योंमें संख्यात भाग हानिका उत्कृष्ट काल दो समय नपुंसकवेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणीपर चढ़े हुए जीवके ही घटित करना चाहिये । किन्तु स्त्रीवेदके उदयवाले मनुष्योंको ही स्त्रीवेदी मनुष्य कहते हैं । अतः इनके संख्यात भागहानिका उत्कृष्ट काल दो समय नहीं प्राप्त होता क्योंकि ये जीव नपुंसकवेदका क्षय हो जाने के पश्चात अमुहूर्त कालके द्वारा ही स्त्रीवेदका क्षय करते हैं। अतः इनके संख्यात भागहानिका उत्कृष्ट काल एक समय ही प्राप्त होता है । तथा उक्त तीन प्रकारके मनुष्यों के अवस्थानका उत्कृष्ट काल जो पूर्वकोटि पृथक्त्वसे अधिक तीन पन्य कहा है वह उनके उस पयोंयके साथ निरन्तर रहने के उत्कृष्ट कालकी अपेक्षासे कहा है। शेष कथन सुगम है। सामान्य देवोंमें संख्यातभागवृद्धि आदिका काल नारकियोंके समान कहना चाहिये। भवनवासियों से लेकर उपरिम अवेयक तकके देवोंमें संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभाग. हानिका काल नारकियोंके समान है। उक्त देवोंमें अवस्थानका काल कितना है ? अवस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण होता है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अवस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। ६ १९२. सामान्य एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त, विकउत्रय तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त, पांचों स्थावर काय, तथा इनके बादर और बादरोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520