Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 468
________________ गा. २२) वड्ढिविहत्तीए कालो ६ ४६०. आदेसेण णेरइएसु संखेजमागवडूढीहाणीणं कालो जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अवहा० केवचिरं० १ जह० एगसमओ-उक्क० तेतीससागरोवमाणि । पढमादि जाव सत्तमि त्ति एवं चेव । णवरि अवहाणस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्क. सग-सगुक्कस्सद्विदीओ। तिरिक्ख-पंचिंदियतिरि०तिगस्त संखेजभागवड्ढीहाणीणं णारयभंगो । अवहाण. जह. एगसमओ, उक्क. सगसगुकस्सहिदीओ। पंचिं. तिरि० अपज० संखेजभागहाणी. जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अवहि० जह. एगसमओ, उक्क० अंतोमु०। एवं मणुस्सअपञ्ज-पंचिंदियअपज०- तसअपज० ओरालियमिस्स०-वेउब्धियमिस्स. वत्तव्वं । 5 ४६१. मणुस-मणुसपज० संखेजभागहाणी-संखेजभागवड्ढी-संखेजगुणहाणीणपरिवर्तनप्रमाण कहा है। ६४१०. आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अवस्थानका काल कितना है ? अवस्थानका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। विशेषार्थ-नरक में अवस्थानका उत्कृष्ट काल तेंतीस सागर उसीके प्राप्त होगा जो अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव नरकमें जाकर या तो वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त करके अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला होकर ही रहे या जो छब्बीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव नरकमें जाकर निरन्तर छब्बीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला होकर ही रहे। शेष कथन सुगम है। - पहली पृथ्वीसे लेकर सातवीं पृथ्वी तक इसीप्रकार कथन करना चाहिये। इतनी विशेषता है कि प्रथमादि पृथिवियों में अवस्थानका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। सामान्य तिथंच और पंचेन्द्रिय आदि तीन प्रकारके तिर्यचोंके संख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्टकाल नारकियोंके समान है। तथा अवस्थानका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अपनी अपनो उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है । तात्पर्य यह है कि जिस मार्गणामें निरन्तर रहनेका जितना उत्कृष्ट काल कहा है तत्प्रमाण वहां अवस्थानका उत्कृष्टकाल है शेष कथन सुगम है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तकों में संख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अवस्थितका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसीप्रकार लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य, पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त, सलब्ध्यपर्याप्त, औदारिकमिश्रकाययोगी और वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके कहना चाहिये। तात्पर्य यह है कि इन मार्गणाओं में जीवके रहनेका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । अतः इनमें अवस्थानका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। २४९१. सामान्य मनुष्य और पर्याप्त मनुष्योंमें संख्यातभागहानि, संख्यातभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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